क्या हो यदि संविधान में अंतिम स्थान पाने वाली मीडिया एक हो जाए,,,,,?
स. सम्पादक शिवाकांत पाठक!
भारतीय संविधान जिन चार खंभों यानि स्तंभों पर टिका है इसका विवरण इस प्रकार है गौर करें👇
1) विधायका,,, वेतन,, सुरक्षा,, गाड़ी,,,आवास,, पेंशन,, स्वास्थ्य,,,,,
(2) कार्य पालिका,, उपरोक्त सेम
(3) न्याय पालिका,,, उपरोक्त सेम
(4) झुनझुना विशेष पर्वो पर प्रेस को जारी विज्ञापन डूबते को तिनके का सहारा,,,,,🙏
बुद्धिजीवी वर्ग के सहारे सदैव रात दिन सेवा में तत्पर ✍🏽🙏🙏🙏🙏
शिकायते,,,,
जनता,,,= काहे के पत्रकार हो ये सड़क की हालत देखो क्या हिम्मत नहीं जुटा पा रहे लिखने की,,, जबकि सड़क जिसने बनवाई है उससे कोई शिकायत नहीं होती 😄 उसे देखते ही जोर जोर से नेता जी जिंदाबाद,, जिंदाबाद, जिंदाबाद,,,😜
मेरा नाम क्यों नहीं छापा तुमने कैसी पत्रकारिता करते हो मेरी फोटो क्यों नहीं आई अखबार में (केले बांटने में मैं भी तो था ,,,,
सत्य छपने पर प्रतिशोध=,, दो मिनट में पत्रकारिता निकाल दूंगा,, गाड़ी चढ़ा दूंगा 🚖,, गोली मार दूंगा ,, साले की वीडियो है मेरे पास पैसे लेते हुए,,,
जबकि सोचो कौन सा लीगल काम आपका बिन पैसे दिए हो रहा है ? और प्रेस द्वारा छपने वाले अखबार आपकी आवाज जन जन तक पहुंचाते हैं उनके सहयोग के लिए विज्ञापन के शिवा कुछ भी नहीं है तो फिर किस बात की वीडियो की बात करते हैं लोग ,,,
अभी भी वक्त है जाग जाओ तो ही बेहतर होगा वरना याद रखना आज़ादी के समय अहम भूमिका निभाने वाली मिडिया का अस्तित्व शून्यता की ओर अग्रसर है और जब आइना ही नहीं रहेगा तो सच को रूबरू कौन कराएगा ,,,
अब आते हैं असली मुद्दे पर तो आप सोचिए कि जो लोग अखबारों की नींव हैं जिन्हे लोग छोटे पत्रकार कह कर पुकारते हैं उन्हें मिलता क्या है ,,,? यह सब आप पढ़ चुके हैं साथ ही आपको बता दें कि सरकारी विज्ञापन सीधे मीडिया संस्थान के संचालक यानि प्रधान सम्पादक के खाते में जाते हैं ,, तो फिर जो वास्तव में जमीन पर काम कर रहा है उसे क्या मिलता है सच तो कड़ुआ होता है लेकिन सोचना तो सभी का फर्ज बनता है,,
कोई भी सैलरी या सुविधा इस चौथे स्तंभ को नहीं दी गई लेकिन इस बात को लेकर आज तक किसी संघठन ने उग्र आंदोलन नहीं किया क्यों ,,,,,?
क्यों कि भारत ही वल्कि विस्व में शक्तिशाली तथा बुद्धिमान लोग सदैव एक दूसरे को नीचा दिखाने पर जुटे रहे,, कभी एक न तो हुए ना ही हो सकते हैं ,,
बस इसी बात का फायदा अंग्रेजों ने उठाकर भारत पर डेढ़ सौ साल राज्य किया ,, डिवाइड एंड रूल,,, यही उनका फार्मूला था जो सच में उन्होने साबित कर दिखाया,,,
विश्व में किसी भी देश की मिडिया आज तक एक नहीं हुई यही सत्य है,, तमाम आर्थिक अभावों से जूझते पत्रकारों से आज तक किसी ने नहीं पूछा कि उनके घर में कोई दिक्कत तो नहीं है,, उनके बच्चो की फीस जमा हुई है या नहीं,, उनके लिए रहने,, समाचार कवरेज पर जानें,, एवम सुरक्षा हेतु किसी भी तरह की सहायता शासन प्रशासन या जनता के द्वारा आज तक देखी नहीं गई क्यों,,?
क्यों कि इन सवालों का जवाब ना तो वर्तमान दे सकता है ना अतीत,, क्यों कि पत्रकार अपनी ताकत को, एक जुटता को भूलकर अपने परिवार के भरण पोषण के लिए हालातों से समझौता करने के लिए मजबूर होकर आत्म समर्पण कर चुके हैं,, वे चाह कर भी सच नहीं लिख सकते,,,, तो फिर सच का अपहरण करने वाले कौन हैं,,,?
आप या हम या फिर भारतीय सिस्टम,,,?
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