ज्ञान की आड़ में धंधा,,पाखंडियों से दूर रहें यही बुद्धिमानी है !

 



सम्पादक शिवाकांत पाठक!


आप यदि किसी से कथा करवाते हैं तो उनकी फीस 12 लाख से लेकर 15 लाख तक है। किसी की फीस भी 15 लाख से 20 लाख है। इसके अलावा प्रसिद्ध  कथावाचकों से कथा करवाने के लिए कम से कम 20 से 30 लाख तक का खर्चा आना सामान्य है।


     ये प्रवचन में आपको बुद्धि देते हैं : “भौतिक सुख का त्याग कर भक्ति करो. भक्ति मे परम सुख है.” कभी देखा इनका अपना भौतिक सुख आपने?   


       _चंद सेवा कार्यों के बहाने धर्म की इंडस्ट्री चलाने वाले इन परजीवियों के पास कितनी अकूत संपत्ति है : आप अंदाजा नहीं लगा सकते. आप पर भगवान की कृपा  बरसाने वालों से आपकी स्थिति रत्ती भर नहीं बदलती. आप भाग्यलोपुप, आसमान में ताकते रहने वाले जरूर बनते हैं._


 ये सभी आडंबर करने वाले जानते हैं कि आप बुद्धिहीन हैं क्यों कि आप यह जानते हुए कि ये बिन पैसे के नहीं आने वाले फिर भी इन्हे ज्ञानी समझ कर आप मूर्खता करते हैं ,, यह कलियुग है ,, इस युग की वास्तिविकता गो स्वामी तुलसी दास जी महराज ने रामायण में लिखी है जिसे आप पढ़ना नहीं चाहते,,


जांके नख अरु जटा विशाला,सोई तापस प्रसिद्द कलिकाला

हिन्दू मन अभी भी उस मानसिकता से नहीं निकल पाया है जब मध्यकाल में उसके देश,धर्म,संस्कृति, सभी को तहस-नहस किया जा रहा था,तत्कालीन समाज इसका प्रतिकार नहीं कर पाया,और अपने को असहाय समझ निराशा के गर्त में डूब रहा था. तब संतो ने भक्ति में नाच -गान संकीर्तन,प्रवचन आदि से समाज के मन को दिलासा देते हुए उन्हें संभालने की सफल कोशिस की थी.नहीं तो हिन्दू धर्म में तो कर्मवाद प्रधान है- “कर्म प्रधान विश्व करी राखा, जो जस कराइ तस फल चाखा”(तुलसीकृत रामायण).जो जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल मिलता है ,जब सुख दुःख कर्मो के परिणाम है तो यह पाखंडी गुरु कैसे किसी को दुखो से छुटकारा दिला सकतें है . गुरु की आवश्यकता बताई गयी है, पर ज्ञान प्राप्ति के लिए.और ज्ञान पाने का उद्देश्य उस परमेश्वर की शरण प्राप्त करना है न की,तथाकथित कलयुगी भगवानो की. शास्त्रों में संतो के जो लक्क्षण बताये गएँ है-वह आज के इन पाखंडियों में कहाँ मिलते है. बाकी पाखंडियो के जो लक्षण तुलसीबाबा ने बतलाये है उन पे यह पूरे खरे उतरते है

तुलसीदास जी के शब्दों में –

“जांके नख अरु जटा विशाला,सोई तापस प्रसिद्द कलिकाला” –

जिसने लम्बी-लम्बी जटा और नाखून रखें हो(ढोंग रचा रखा हो) ऐसे पाखंडी ही कलियुग में बड़े तपस्वी कहलातें है.

“नारी मुई,गृह संपत्ति नाशी,मुंड मुंडाए भये सन्यासी ”

जिसकी पत्नी मर गयी घर-बार संपत्ति का नाश हो गया है, ऐसे लोग सिर मुंडवा के सन्यासी का भेष धरे बैठ जाते है

हिन्दू समाज आज इन ढोंगियों के पाँव पड़ने में ही अपना कल्याण मान रहा है .



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