गलत कौन है,, सिस्टम,, पत्रकार,, या भारतीय संविधान निर्णय करें ,,,?
संपादक शिवाकांत पाठक!
मान लिया जाए कि आज से 50 वर्ष पूर्व की स्थिति को देखते हुए बुद्धिजीवियों द्वारा किसी भी सिद्धांत को लागू किया गया लेकिन समय के अनुसार बदलाव भी आवश्यक होता है ,, प्रकृति सदैव परिवर्तन शील होती है ,, और यदि मनुष्य समय के अनुसार खुद को नहीं बदल सकता तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं,, आज न्याय व्यवस्था हो या फिर , आम जनजीवन हो,, हर व्यक्ति परेशान नजर आता है,, जनता नेताओं को चुनती हैं,, और नेता वही करते हैं जो उनके हित में होता है,, जनहित मुद्दो से यहां पर कोई सरोकार नहीं है,, वादी मृत्यु को प्राप्त होकर भी न्याय नहीं पा सकता आखिर क्यों,,?
अनपढ़ व्यक्ति कानून बनाने का अधिकार रखता है,, पढ़ा लिखा व्यक्ति विदेशों में जाकर अपनी प्रतिभा का समुचित लाभ पा रहा है क्यों,,, आप खुद बुद्धिमान हैं तो जवाब दो,,,
हमारे देश में भारतीय संविधान की धारा 19 क्या है
संविधान उन नियमों के समूह को कहा जाता है, जिनके अनुसार किसी देश की सरकार का संगठन होता है। ये देश का सर्वोच्च कानून होता है। सरल शब्दों मे संविधान किसी राज्य की शासन प्रणाली को विवेचित करने वाला कानून होता है। यह राज्य का सबसे महत्वपूर्ण अभिलेख होता है। राज्य के लिए संविधान का वही अर्थ एवं महत्व है जो मनुष्य के लिए शरीर का है। अतः संविधान राज्य का शरीर है। राज्य के संदर्भ मे शरीर का अर्थ है उस राज्य की पद्धति। यूनानी दार्शनिक अरस्तु के शब्दों मे, " संविधान उस पद्धति का प्रतीक होता है जो किसी राज्य द्वारा अपने लिए अपनाई जाती है।
संविधान जीवन का वह मार्ग हैं, जिसे राज्य ने अपने लिए चुना है। और राज्य को जनता चुनती है राज्य का रूप चाहे किसी भी प्रकार का हो, आवश्यक रूप से उसका अपना एक जीवन-मार्ग अर्थात् संविधान होता है। यदि राज्य में कोई भी नियम न हो, मर्यादा का सर्वथा अभाव हो तो ऐसी परिस्थिति में आवश्यक रूप से अराजकता की दशा उत्पन्न हो जायेगी। राज्य के संविधान की अनिवार्यता बताते हुए जेलिनेक ने लिखा हैं," संविधान रहित राज्य की कल्पना नही की जा सकती। संविधान के अभाव में राज्य, राज्य न होकर एक प्रकार की अराजकता होगी। इसी प्रकार शुल्टज लिखते है कि," राज्य कहलाने का अधिकार रखने वाले हर समाज का संविधान अवश्य होना चाहिए.....संविधानहीन राज्य की कल्पना ही नही की जा सकती।"
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया है कि अनुच्छेद 19/21 के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार को राज्य या उसके साधनों के अलावा अन्य व्यक्तियों के खिलाफ भी लागू किया जा सकता है!
न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अनुच्छेद 19(1)(A) के तहत गारंटीकृत भाषण और अभिव्यक्ति के अधिकार को अनुच्छेद 19(2) में पहले से निर्धारित किये गए आधारों के अलावा किसी भी अतिरिक्त आधार पर प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है।
अनुच्छेद 19:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 में वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रावधान है और आमतौर पर राज्य के खिलाफ लागू होता है।
भारतीय संविधान, 1949 का अनुच्छेद 19 सभी नागरिकों को स्वतंत्रता के अधिकारों की गारंटी प्रदान करता है, जो इस प्रकार हैं:
वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार।
शांतिपूर्वक सम्मेलन में भाग लेने की स्वतंत्रता का अधिकार।
संगम या संघ बनाने का अधिकार।
भारत के संपूर्ण क्षेत्र में अबाध संचरण की स्वतंत्रता का अधिकार।
भारत के किसी भी क्षेत्र में निवास का अधिकार। व्यवसाय आदि की स्वतंत्रता का अधिकार।
Comments
Post a Comment