दीप मिट्टी से बना यह सृजन मिट्टी का मनुज है,,,
श्रेष्ठ हमसे दीप है यह
सिर उठा कर जी रहा है,
दे रहा आलोक जग को
तमस को खूद पी रहा है।
दीप मिट्टी से बना यह
सृजन मिट्टी का मनुज है ,
दीप में देवत्व है तो
मनुज क्यों बनता दनुज है।
मन प्रकाशित फिर करें हम
दीप से लेकर उजाला,
जड़ विचारों को हृदय से
शीघ्र अब जाए निकाला ।
आओ हम सब दीप बनकर
सर्वस्व अपना बाँटते हैँ,,
विकल मानव के हृदय की
वेदना को छाँटते हैँ ।
रचना
स संपादक शिवाकांत पाठक
वी एस इंडिया न्यूज़
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