कांव कांव कांव कांव
स संपादक शिवाकांत पाठक,,,
पाखंडी लाल,,,,, सुना है नगर निकाय चुनाव चल रहें हैँ इस समय,,,,?
फेंकू लाल ,,,, वो तो चल ही रहें हैँ इसमें सुना है क्या है,, सुन मेरे पाखंडी लाल प्यारे मित्र जो होना है वह तो होगा,, सब कुछ ईश्वर की मर्जी से होता है,,
पाखंडी लाल,,, ज्यादा ज्ञान ना सिखा सुबह से शाम तक तू दिहाड़ी के लिए लगा रहता है प्रत्याशियों के साथ और शाम को तुझे मिल जाती है एक बोतल,,बस गटर गटर गले उतार कर आ गया ज्ञान बाँटने,,,,कल तू किसी और पार्टी का प्रचार कर रहा था,, आज तू मुझे दूसरी पार्टी के साथ दिखा,,,
फेंकू लाल,,, अबे सुन मेरे यार पाखंडी लाल यह तो तेरा भ्रम है,,तेरी आँखों में माया का पर्दा पड़ा है इसलिए तुझे लोगों में भेद समझ आ रहा है,, ये सभी एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैँ,, तुझे अलग दिख रहे हैँ,, जबकि शाम को सब साथ में इंजवाय करते हैँ गले मिलते हैँ,, यह सब इनका डबल रोल होता है,,,इनके साथी भी लोगों की नजरें बचा कर सभी जगह मुँह मारते हैँ,,
पाखंडी लाल,, अच्छा,, ऐसा है,, तो कल मुझे दिखा,,,
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