भाजपा हराओ के शांखनांद का अभ्युदय क्यों और कैसे,,? उत्तराखंड!

 




नगर निकाय चुनाव की तैयारियां तमाम लोगों ने वर्षो से कर रखी थीं,, हाँ ये बात और है कि टिकट को लेकर तमाम लोगों की उम्मीदों पर तुसाराघात हुआ जिसके परिणाम स्वरुप अंतरकलह, के चलते भाजपा के ही जिम्मेदार कार्यकर्त्ता गृह युद्ध में उतर आये,, परिणाम स्वरुप भाजपाई ही सिम्बल के प्रतिद्वंदी के रूप में खड़े देख महाभारत जैसा मंजर एक बार जनता को दिखा,, विपक्ष और पक्ष में खड़े सभी उम्मीदवार अपने दिख रहे थे,,

अब यहाँ पर जनता के सामने मोह के कारण जो स्थित उत्पन्न हुईं वही स्थिति अर्जुन के सामने थी,,

युद्ध में दुश्मनो की सेना में खड़े पितामह भीष्म, द्रोणाचार्य,अश्वत्थामा, आदि सामने देख जनता का भी संयम डोल गया,, सभी तो अपने थे किसे विजयी करू,, किसे पराजित करू बड़ी विषम परिस्थिति थी,, ऐसे में मामा शकुनी भी दुधारी तलवार लेकर मैदान में डटे हुये थे,,


 युद्ध तो तय था, हार जीत भी विधाता ने पहले ही तय कर दी थी,, कर्मो के अनुसार विधि का विधान निर्णायक सिद्ध होता है,, रावण द्वारा देवताओ को परास्त किये जाने पर उसे अभिमान आ गया,, अभिमान विनाश का कारण होता है,, युद्ध सत्य का हो या असत्य का जीत के बाद अभिमान सदैव ही व्यक्ति को पतन की ओर अग्रसर करता है,,

जनता की उपेक्षा करने वालों को युद्ध के परिणामो से सीख लेनी चाहिए क्योकि जनता जनार्दन का स्वरुप होती हैँ,, साथ ही किसी भी बड़ी पार्टी के शीर्ष नेताओं को चाहिए की वे चनावी युद्ध में किस महारथी को उतरना है इसका निर्णय दूरगामी सोच के आधार पर करें ताकि अंतर्कलह ना हो,, क्यों कि पार्टी या संगठन में समर्पण की भावना से कार्य करने वालों के साथ हुये पक्षपात बगावत का कारण बनते हैं,,,

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