बजने लगी यहाँ रण भेरी अर्जुन धनुष उठाना होगा,,,,

 




















बजने लगी यहाँ रण भेरी अर्जुन धनुष उठाना होगा,,,,


तुमको सबक सिखाना होगा,,,


तुम जिनको अपना कहते हो कब अपना समझा है,,,


पांच गांव दें सके नहीं सोचो कि मन में क्या है,,,,


माया के बंधन तोड़ो अब समर भयंकर होगा,,,,

तुम अब केवल युद्ध करो मत सोचो की क्या होगा,,,


कोई नहीं कर सका आज तक तुमको कर दिखलाना होगा,,,


तुमको सबक सिखाना होगा,,,


तेरा सारथी मैं हूँ अर्जुन तुमको फिर क्या डरना,,,


मृत्यु सभी की निश्चित है बस तेरे द्वारा मरना,,,


शाम, दाम और, दंड, भेद से तुम इन सबको मारो,,


निर्भय होकर युद्ध भूमि में इन सबको ललकारो,,


हुआ बहुत अन्याय तुम्हारे साथ तुम्हे बतलाना होगा,,,


तुमको सबक सिखाना होगा,,,


स्वरचित मौलिक रचना 


स संपादक शिवाकांत पाठक

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