क्या गंगा में डुबकी लगाने से पाप वास्तव में समाप्त होते हैं! हरिद्वार! स. संपादक शिवाकांत पाठक!
आखिर सच क्या है ?
एक समय की बात है भगवान शिव और पार्वती के साथ हरिद्वार में घूम रहे थे। पार्वती जी ने देखा कि सहस्त्रों मनुष्य गंगा में नहा-नहाकर ‘हर-हर’ कहते चले जा रहे हैं परंतु प्राय: सभी दुखी और पाप परायण हैं। पार्वती जी ने बड़े आश्चर्य से शिव जी से पूछा कि गंगा में इतनी बार स्नान करने पर भी इनके पाप और दुखों का नाश क्यों नहीं हुआ? क्या गंगा में सामर्थ्य नहीं रही?’
शिवजी ने कहा, गंगा में तो वही सामर्थ्य है, परंतु इन लोगों ने पापनाशिनी गंगा में स्नान ही नहीं किया है तब इन्हें लाभ कैसे हो? ये लोग सिर्फ जल में डुबकी लगाकर आ रहे हैं। इसी बीच भगवान शिव के मन में एक खयाल आया व उन्होंने माया रची!
भगवान की लीला से दूसरे दिन काफी जोर की बरसात हुई! इससे गलियां में कीचड़ ही कीचड़ था शिवजी ने वृद्ध रूप धारण कर लिया और गड्ढे में गिर गए,जैसे कोई मनुष्य चलता-चलता गड्ढे में गिर पड़ा हो !
उन्होंने पार्वती जी को समझाकर गड्ढे के पास बैठा दिया और बोले कि वे असहाय बनकर गंगा में नहाकर आ रहे लोगों से मदद मांगें। जब कोई गड्ढे में से उन्हें निकालने को तैयार हो तब कह दें कि उनके पति सर्वथा निष्पाप हैं, इन्हें वहीं छुए जो स्वयं निष्पाप हो यदि वह निष्पाप हैं तो ही हाथ लगाएं, नहीं तो हाथ लगाते ही मदद करने वाला तुरंत भस्म हो जाएगा।
पार्वती जी गड्ढे के किनारे बैठ गईं और गंगा नहाकर आने-जाने वालों से रो-रोकर मदद मांगने लगीं कुछ लोगों ने तो पार्वती जी को यह भी सुना दिया कि वह बुड्ढे को मरने दे और अपना नया जीवन शुरू करे। वहीं कुछ लोगों ने, महिला के पति को निकालना चाहा लेकिन वचन सुनकर वे भी रुक गए। उन्होंने सोचा कि गंगा में नहाकर आए हैं तो क्या हुआ, पापी तो हैं ही, कहीं होम करते हाथ न जल जाएं। बूढ़े को निकालने का किसी का साहस नहीं हुआ। सैकड़ों आए, सभी ने पूछा और चले गए। शाम हो चली थी शिव जी अभी भी गढ्ढे में पड़े थे, शिवजी ने कहा, ‘‘पार्वती! देखा, आया कोई गंगा में नहाने वाला?’’
थोड़ी देर बाद ही एक जवान हाथ में लोटा लिए हर-हर करता हुआ निकला, पार्वती जी ने उससे भी मदद मांगी। युवक ने तुरंत ही वृद्ध ही को निकालने की तैयारी की। पार्वती ने कहा कि ‘‘भाई यदि तुम पापी हुए तो मेरे पति को छूते ही जल जाओगे।’’
उसने उसी समय बिना किसी संकोच के दृढ़ निश्चय के साथ पार्वती से कहा कि ‘‘माता! मेरे निष्पाप होने में तुझे संदेह क्यों होता है? देखतीं नहीं मैं अभी गंगा नहाकर आया हूं। भला, गंगा में गोता लगाने के बाद भी कभी पाप रहते हैं? मैं अभी तेरे पति को निकालता हूं।’’ युवक ने लपककर बूढ़े को ऊपर उठा लिया। शिव-पार्वती ने प्रसन्न होकर युवक को अपना असली रूप दिखाकर कृतार्थ किया। शिवजी ने पार्वती से कहा कि ‘‘इतने लोगों में से इस एक ने ही गंगा स्नान किया है।’’
जो लोग केवल दंभ के लिए गंगा स्नान करते हैं उन्हें वास्तविक फल नहीं मिलता परंतु इसका यह मतलब नहीं कि गंगा स्नान व्यर्थ जाता है। विश्वास के साथ किए गए गंगा स्नान का मिलता है वास्तविक फल।
तो अब आप समझ गए होंगे कि अगर आप कर्म नही करते हैं तो आप गंगा स्नान नही सिर्फ पानी की धारा में नहा रहे होते हैं।
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