स्वामी श्री रविंद्र पुरी जी महराज हैं वास्तविक संत जानिए क्यों,,,? हरिद्वार !
संपादक शिवाकांत पाठक!
वर्तमान समय पर साधु वेष में कपटी मुनियों की कमी नहीं है ,, जैसा कि आए दिन सुनने को मिलता है कि आमुख बाबा, या फिर संत जेल भेजे गए,, क्यों कि कलि युग के प्रभाव वश भौतिक सुख की लालसा में कुछ संतो ने वास्तव में इस समय तमाम सवाल खड़े कर दिए हैं,, लेकिन आज भी वास्तविक रूप से यदि देखा जाए तो कमी केवल संत की पहचान करने में हर इंसान की ही होती है ,, क्यो कि आधुनिक चकाचौंध में पड़ कर आज हर मानव वास्तविक सत्य को स्वीकार नहीं कर पाता,, आज हम बात करते हैं एक ऐसे संत की जिन्होंने वास्तव में यह साबित कर दिखाया कि संपूर्ण श्रष्टि"" राम मय है ""गोस्वामी तुलसी दास जी महराज राम चरित मानस में लिखते हैं कि, "सिया राम मय सब जग जानी,,, अर्थात ब्रम्ह स्वरुप भगवान राम और माया शक्ती स्वरूपा भगवती सीता की श्रष्टि के कण कण में विद्यमान हैं,, वे संत हैं महामंडलेश्वर ,अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् अध्यक्ष ( मां मंशा देवी ट्रस्ट के अध्यक्ष ) महामंडलेश्वर स्वामी श्री रविन्द्र पुरी जी महराज जिनसे दैवीय आपदा कोरोना काल में आम गरीब जनता का दर्द देखा नहीं गया ,, जैसे कि वे वे आम जन मानस की पीड़ा को स्वयं महसूस कर रहे हों,, और मुख्य मंत्री राहत कोष में करीब तीन करोड़ रुपए सहायता राशि प्रदान कर यह साबित कर दिया,, वास्तव में संतो का हृदय नवनीत यानी मक्खन की तरह नर्म होता है,, जैसा कि गो स्वामी तुलसी दास जी महराज लिखते हैं,,,संत हृदय नवनीत समाना। कहा कबिन्ह परि कहै न जाना॥
निज परिताप द्रवइ नवनीता। पर सुख द्रवहिं संत सुपुनीता॥4॥
भावार्थ
संतों का हृदय मक्खन के समान होता है, ऐसा कवियों ने कहा है, परंतु उन्होंने (असली बात) कहना नहीं जाना, क्योंकि मक्खन तो अपने को ताप मिलने से पिघलता है और परम पवित्र संत दूसरों के दुःख से पिघल जाते हैं॥4॥
वास्तविक सत्य तो यही है कि ईश्वर के अति प्रिय संतो के मन में लोभ , मोह,माया अपना स्थान नहीं बना पाती ,, इसीलिए सैकड़ों श्रद्धालु इन परम ज्ञानी महन्त श्री रविंद्र पुरी जी महराज के दर्शन मात्र से धन्य हो जाते हैं,,
ऐसे आत्म ज्ञानी परम पूज्य गुरुदेव रवीन्द्र पुरी जी महराज के चरणों में मैं अपना लेख समर्पित करता हूं ,, क्यों ऐसे महान तपस्वी के गुणों का वास्तविक वर्णन करने में कलम भी सक्षम नहीं है 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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