किसकी पीड़ा देख कर रो पड़े भगवान राम!
अध्यात्म
संपादक शिवाकांत पाठक!
रामजी के वनवास काल में, घोर घने वन में चलते हुए, रामजी आगे चलते हैं,सीताजी बीच में और लक्ष्मणजी सबसे पीछे चलते।
सीताजी रामजी के चरणचिन्हों पर पैर नहीं रखतीं, #लक्ष्मणजी दोनों के ही चरणचिन्हों पर पैर नहीं धरते, थोड़ा हट कर चलते हैं, कि कहीं प्रभु और माँ के चरणचिन्ह मिट न जाएं।
जहाँ पगडंडी पतली आ जाए तो लक्ष्मणजी को पगडंडी से उतर कर झाड़ में चलना पड़े, और पैरों में काँटे चुभ जाएं।
पर वे उफ ना करें, शिकायत ना करें। यों चलते चलते पैर में काँटे ही काँटे हो गए, पैर धरते हैं तो पैर भूमि को छूता ही नहीं, काँटे ही छूते हैं, उन्होंने तो कहा नहीं, पर दर्द असहनीय हो गया तब प्रभु ने सहसा ही यात्रा रोक दी।
लक्ष्मणजी को गोद में उठाकर एक शिला पर बिठाया, स्वयं नीचे बैठकर पैरों से काँटे निकालने लगे, और अपने आँसुओं से धोकर पैरों को स्वस्थ कर दिया।
अब रामजी ने चलने का क्रम उलट दिया, लक्ष्मणजी को आगे कर दिया, सीताजी बीच में ही रहीं और रामजी पीछे पीछे चलने लगे।
समझे
अरे कष्ट तो प्रारब्ध का है। प्रभु के मार्ग पर चलो या ना चलो, आएगा ही,पर अगर प्रभु के मार्ग पर चले, कष्ट सहते चले गए, शिकायत भी न की, रुके नहीं, लौटे नहीं, तो वह दिन अवश्य ही आता है जब प्रभु स्वयं आपके कष्ट दूर कर देते हैं।
और फिर आपको उनके पीछे नहीं चलना पड़ता, वे ही आपके पीछे पीछे चलने लगते है।
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