अब त्याग या साधना नहीं अपितु टिकट चाहिए संतो को। हरिद्वार।




  (पूर्व कृत कर्मो के परिणाम से प्राप्त सुखों के साथ याद रखें आप भविष्य के लिए क्या कर रहे हैं)

स.संपादक शिवाकांत पाठक।


लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही सभी राजनीतिक पार्टियां सक्रिय रूप से अपनी चुनाव की रणनीति की भूमिका बनाने में लगी हुई है. टिकट किसे नहीं मिलेगा यह घोषणा सार्वजनिक होते ही धर्मनगरी हरिद्वार के संतों ने भी मांग उठानी शुरू कर दी है. संतो ने मांग की है कि हरिद्वार लोकसभा सीट का टिकट किसी संत को देना चाहिए जिससे हरिद्वार का विकास हो सकेगा क्योंकि हरिद्वार धार्मिक नगरी है. आए दिन यहां पर बड़े-बड़े आयोजन होते हैं. अगर कोई संत हरिद्वार से संसद बनेगा तो हरिद्वार का विकास होगा.

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी महाराज का कहना है कि संत महात्माओं के द्वारा आज महामंडलेश्वर स्वामी जगदीश मुनि जी को श्रद्धांजलि अर्पित की गई है. लोकसभा चुनाव में संत को टिकट दिए जाने को लेकर श्रीमहंत रवींद्र पुरी महाराज कहा की समय-समय पर संतों के द्वारा अपनी भावनाओं को व्यक्त किया जाता है. बीजेपी के द्वारा पहले भी संतों को सम्मान किया गया है. इस बार भी लोकसभा चुनाव में संत टिकट दिया जाए. हरिद्वार से पहले भी यह मांग उठ चुकी है हुए आशा है कि संतों की भावनाओं का सम्मान किया जाएगा.


अब आपको हम वैदिक धार्मिक रीति के अनुसार सर्व श्रेष्ठ ग्रंथ राम चरित मानस में जो संतो के बारे में जानकारी दी गई है उसे बता दें,,, गौर करें 👇🏽




कोमल चित दीनन्ह पर दाया। मन बच क्रम मम भगति अमाया ॥ सबहि मानप्रद आपु अमानी। भरत प्रान सम मम ते प्रानी ॥


भावार्थ:-उनका चित्त बड़ा कोमल होता है। वे दीनों पर दया


करते हैं तथा मन, वचन और कर्म से मेरी निष्कपट (विशुद्ध) भक्ति करते हैं। सबको सम्मान देते हैं, पर स्वयं मानरहित होते हैं। हे भरत! वे प्राणी (संतजन ) मेरे प्राणों के समान हैं॥


बिगत काम मम नाम परायन । सांति बिरति बिनती मुदितायन ॥ सीतलता सरलता मयत्री। द्विज पद प्रीति धर्म जनयत्री ॥


भावार्थ:-उनको कोई कामना नहीं होती। वे मेरे नाम के परायण होते है। शांति, वैराग्य, विनय और प्रसन्नता के घर होते हैं। उनमें शीलता, सरलता, सबके प्रति मित्र भाव और ब्राह्मण के चरणों में प्रीति होती है, जो धर्मों को उत्पन्न करने वाली है।


भारतीय संतो का इतिहास देखें तो सदैव भौतिक सुखों से विरक्त, समाज से दूर जंगलों में निराहार रह कर अपनी साधना तपस्या से विष्व की मंगल कामना की है,, अब यहां टिकट की बात कहां से आ गई,,, संत तो सदैव भौतिक सुखों का परित्याग कर ईश्वर आराधना में लीन रहते हैं लेकिन कलियुग ती अपना प्रभाव दिखलाएगा ही,, सड़को पर भिख मांगने वालों को भले ही लोग एक पैसा ना दें लेकिन इनकम टैक्स बचाने के लिए ट्रस्ट में दान देना उनकी मजबूरी है पुण्य नहीं,, वरना आज संत समाज राजनीति के दल दल में कभी नहीं उतरती, यह मेरा अपना मत है विचार है, ऊंची उड़ान भरने वाली संत समाज कल कहे कि ये कौन है जिसने इतना गलत लिखा है तो एक बार सोच भाई लेना कि गलत है या फिर सही,


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