कांव कांव,, कथित पत्रकारिता एवम फर्जी पत्रकार पर मंच गया हाहाकार,,,,,,? हास्य व्यंग,,,
लेख,,,,स.संपादक शिवाकांत पाठक।
माना कि धृतराष्ट्र दृष्टि विहीन थे,, तो गांधारी को आखों में पट्टी बांधने की जरूरत क्यों पड़ी,,, आज चौथे स्तम्भ की वास्तविकता पर उठने वाले हर सावल पर जिम्मेदार मौन क्यों,,,,?
अति प्राचीन ग्रंथो में वर्णित सत्य तो यही है कि यदि आवेश में या प्रतिशोध वश कोई भी कार्य किसी ने भी किया है, किसी की आत्मा को दुखाया है, अन्याय किया है तो अदृश्य शक्ति उसे सजा अवश्य देती है,, यह एक अकाट्य सत्य है,,
सभी वृक्षों में जो स्थान बबूल का है , जानवरों में जो अदब सांड का होता है ; रिश् वतखोरी में जो इज्जत एक ,,,,,,? की है; कलमकारों में वही महत्व पत्रकार का है। पत्रकार अर्थात एक ऐसा मानव जो निहायत भ्रमजीवी किस्म के पाए जाते हैं। नमस्कार को भी पुरस्कार मान कर जीने वाला एक मात्र प्राणी होता है पत्रकार । अच्छे से ज्यादा , बुरे में हाजिर हो जाता है। कहीं गोली चल जाए तो पत्रकार ; हत्या हो ; छापा पड़े ; भ्रष्टाचार हो वहां सबसे पहले हाजिर होता है पत्रकार,रवि ( सूर्य ) और कवि दोनो से पहले ही श्रीमान पत्रकार हाजिर हो मिलते हैं। मेहनताना छोड़िए कभी कभी तो केवल ताने से ही काम चलाना पड़ता है। नेताओं और अधिकारियों का ‘प्रेम‘ तो सदैव बना ही रहता है वह दिखावटी ही क्यों ना हो।
गहन विवेचन से ज्ञात होता है कि पत्रकार प्रजातियों की विशेष कर चार नस्लें पायी जाती हैं। प्रथम प्रजाति में वे महापुरुष आते हैं जिनके पास पत्र तो नहीं है लेकिन कार जरूर देखने को मिलती है। ऐसे पत्रकारों की तादाद ज्यादा है। यह प्रजाति आसानी से महानगरों , शहरों में सुलभता से पाई जाती है। कई- कई कारे नौकर चाकर बंगला और कहने भर के लिये पत्र भी जिनकी सूचना जनता को तो नहीं रहती लेकिन नौकरशाहों को रहती है ऐसा सुनने में ही नहीं वल्कि देखने को भी मिलता है। उनके पास जो पत्र हैं उनकी कितनी प्रतियां बिकती है इसकी लिखित सूचना जिम्मेदारों के पास तो जरूर रहती है। कई महापुरुष बुद्धिजीवी तो ऐसे हैं जिनके पास ऐसे दर्जनों समाचार पत्र हैं जिनकी गिनती करना वेवकूफी है जिनको कभी भी किसी ने किसी स्टाल पर , या ऑफिस में नहीं देखा होगा । किसी भी समाचार से मतलब न रहते हुये भी ये पत्र यानी कि अखबार हैं और वे बड़े सम्मानित पत्र माने जाते हैं। सरकारी विज्ञापनों से उन्हें कोई लेना देना नहीं,,, ऐसा नहीं है कि हमारे ये महारथी इसकी कमाई पर ही केवल निर्भर हैं , ऐसी बात नहीं हैं। इनके पास ऐसे पत्रकार भी हैं जिनके पास न तो अपनी कमाई का कोई साधन है और न ही बेचारे मेहनत मजदूरी कर के अपना पेट पाल सकते हैं। वे लोग जो गुनाह के तौर पर पढ़ लिख गये , उनको पत्रकार बनने का चस्का लग जाता है। वैसे उत्साही लोगों के लिये इनके दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं। ये लोग हमेशा .खबर खोदने के चक्कर में लगे रहते हैं जिसमें कमाई अच्छी नजर आती है। इनके द्वारा खोदी गयी खबरों में से कभी -कभी ऐसा मसाला भी मिल जाता है जिसके बल पर ये महारथी कुछ अतिरिक्त माल समेट लेते है। इनकी लीलाओं से इनकी ख्याति बड़ी बड़ी महिफिलों में अवैध कार्यों में लिप्त लोगों में रहती है। यही कारण है कि इनके पास कार तो रहती है लेकिन पत्र नहीं। पत्रकारिता जगत के ये सूरमा माने जाते हैं मगर ऐसी बात बिल्कुल नहीं कि इनकी कोई उपयोगिता नहीं है ये बहुत चापलूस और बुद्धजीवी होते हैं। इनकी बहुत बड़ी सामाजिक उपयोगिता देखने को मिलती है है। ज्ञान के मामले में ये बड़े ही भाषण- वीर मनुष्य होते हैं। यदि आदर्श बातों का संसार में टोटा हो गया हो तो इनकी सेवाएं ली जा सकती हैं। बातों में आदर्श शब्द घोलना इन्हें खूब आता है। इनके रहते संसार से आदर्शवाद का अंत नहीं हो सकता क्यों कि ये आशीर्वाद जीवी पत्रकार होते हैं।
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