कावड़ यात्रा के दौरान तोड़ फोड़ करना भक्ति का विकृत स्वरुप,!हरिद्वार,!
स संपादक शिवाकांत पाठक,,,
सावन का माह भगवान भोले नाथ की भक्ति के लिये श्रेष्ठ माना जाता है, शास्त्रों के अनुसार शम करोति इति शंकरा: अर्थात विषम को शम करने की क्षमता भगवान भोले नाथ में है तो फिर भक्तो में भी होना चाहिए,, जो कावड़ के छू जाने टक्कर लग जाने पर मार पीट तोड़ फोड़ कर ओछी मानसिकता का उदाहरण पेश करते जरा सोचे,, शव यात्रा के बाद घर आकर लोग नहाते हैँ क्यों कि मुर्दे को अशुद्ध माना गया है और उसी मुर्दे की राख को अपने शरीर पर मलने वाले, समुद्र से निकले हुए कालकूट, शंखिया जहर का विष पान करने वाले,
शमशान में धूमी रमाने वाले भूतभावन भगवान शंकर को अर्पित की जाने वाली वस्तुए भी क्या अशुद्ध हो सकती है,,
जिसके यहाँ मोर,, सांप, बैल, शेर चूहे आदि वैर भाव भुला कर एक साथ रहते हों उस भोले के भक्तों में क्रोध तो हो ही नहीं सकता,, साथ ही कैलास पर्वत को उठाने की महान गलती करने वाले रावण को जिस महादेव ने क्षमा कर दिया हो उस महादेव भोले के भक्त संयम खो कर आपराधिक कृत्य करें ऐसा असम्भव है,, जो लोग ऐसा करते है वे भक्ति मार्ग को दूषित करते है,, भोले का अर्थ है सीधा साधा,, शांत रहने वाला देव,, तभी तो वे महादेव कहलाते है,,
( श्रीगीता में भगवान श्री कृष्ण अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रा करुण एव च कह स्पष्ट करते हैं कि मैत्रीभाव एवं करुणा से भरे भक्त के स्वभाव में द्वेष का सर्वथा अभाव रहता है। भक्त अपना अनिष्ट करने वालों की सारी क्त्रियाओं को भी भगवान का कृपापूर्ण मंगलमय विधान ही मानता है। क्योंकि उसकी मान्यता में अनिष्ट करने वाला भी (निमित बनकर) उसके पूर्वकृत कर्मो के नाश में सहायक है )
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