जबाब दो,,आत्महत्याएं पुरुष ज्यादा करते हैँ पागलखानों में पुरुष ज्यादा हैँ फिर पुरुष आयोग क्यों नहीं,?
स संपादक शिवाकांत पाठक,,
पुरुष कहते हैं कि हमें आपके विचार प्रिय लगते हैं, इसलिए आपसे प्रेम हो गया। मतलब आपके विचारों के बाद प्रेम हुआ,,विचार प्रथम हैं, प्रेम दुसरे नंबर पर है। स्त्रियां कहती हैं, हमें आपसे प्रेम हो गया, इसलिए आपके विचार भी ठीक लगते हैं। प्रेम पहले है, विचार दुसरे नंबर पर हैँ,! दोनों का व्यक्तित्व अलग-अलग है, भिन्न-भिन्न है। इसलिए स्त्रियों ने कोई बड़े शास्त्र नहीं रचे, न कोई बड़े दर्शन को जन्म दिया। पुरुषों ने बड़े शास्त्र रचे, बड़े संप्रदाय रचे, बड़े दर्शनशास्त्र पैदा किए। लेकिन प्रतीति ऐसी है कि पुरुष के बजाय स्त्रियां ज्यादा सुख से जीतीं हैं। इसको मनोवैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं अब।इसे समझने की कोशिश करें।
पागलखानों में पुरुषों की संख्या ज्यादा है, स्त्रियों की बहुत कम। कारागृहों में पुरुषों की संख्या बहुत ज्यादा है, स्त्रियों की न के बराबर। मानसिक रोग पुरुषों को जितनी सरलता से पकड़ते हैं, स्त्रियों को नहीं। पुरुष जितनी आत्महत्याएं करते हैं, स्त्रियां नहीं- हालांकि स्त्रियां कहती बहुत हैं- करती नहीं। स्त्रियां अक्सर कहती रहती हैं- आत्महत्या कर लेंगे। कभी-कभी गोली भी खाती हैं, लेकिन गिनती की -सुबह ठीक हो जाती हैं। मरना नहीं चाहतीं। अगर मरने की बात भी करती हैं, तो वह भी जीवन की किसी गहन आकांक्षा के कारण -जीवन को जैसा चाहा था, वैसा नहीं है। इसलिए मरने को भी तैयार हो जाती है, लेकिन मरना चाहती नहीं। स्त्री जीवन से बड़ी गहरी बंधी है।
पुरुष जरा सी बात में मरने को तैयार हो जाता है। फिर जब पुरुष कुछ करता है तो पूरी सफलता से ही करता है, फिर वह मरता ही है। फिर वह ऐसा नहीं करता कि अधूरे उपाय करे, वह गणित उसका पूरा है, वैज्ञानिक है; वह मरने का सारा इंतजाम करके मरता है। स्त्री मरने की बात करे, बहुत ध्यान मत देना; कोई चिंता करने की बात नहीं। पुरुष मरने की बात करे, थोड़ा सोचना। अक्सर तो ऐसा होता है पुरुष मर जाएगा, मरने की बात न करेगा। स्त्री मरने की बात करती रहेगी, और जीती रहेगी।
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