घर से मंदिर है बहुत दूर चलो यूँ कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाये,!हरिद्वार,,!
स संपादक शिवाकांत पाठक,,
अपनी ड्यूटी को ही पूजा अर्चना समझ कड़े निर्णय लेने वाले एस एस पी प्रमेन्द्र डोभाल के कदमो को रोकने का साहस आखिर किया किसने,, सभी लोग स्तब्ध थे,,,नन्ही सी उम्र में घर परिवार की जिम्मेदारी सँभालने हेतु रस्सी पर हैरत अंगेज करतब दिखाते हुए आई पी एस प्रमेंद डोभाल की नजर कावड़ मेले के दौरान उस समय पड़ी जब वे मेला कंट्रोल रूम की ओर जा रहे थे, बच्चे को देखते ही उनका मन द्रवित हो गया,, भावुकता वस अनायास ही उनके कदम रुक गये,, उन्होने इसारे से बच्चे को अपने पास आने को कहा,, लेकिन बच्चे ने सोचा कि शायद वे डांटेंगे इसलिए सहम गया,, डरते डरते पास आया तो श्री डोभाल ने अपनी जेब कुछ रूपये उसकी कला कौसल पर ख़ुश होकर दिए,, जैसे उनका मन कह रहा हो इनती छोटी सी उम्र भी इतनी बड़ी जिम्मेरियो का बोझ उठाता ये बच्चा,, जिसका बचपन न जाने कहाँ खो गया,, श्री डोभाल का ये मानवीयता पूर्ण श्रेष्ठ कार्य लोगो के दिलो को झाझकोर गया,,
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