विचारों के कचरे से निकलने हेतु ध्यान एक मात्र उपाय,!स संपादक शिवाकांत पाठक,!

विचार मन में उठते हैँ और मन हवा से भी ज्यादा तेज गति से चलायमान है,, इसलिए विचार का मैं कोई मूल्य भी नहीं मानता। वरन विचार के कारण ही मनुष्य पीड़ित है और दुखी।मन स्थिर तो केवल ध्यान द्वारा किया जा सकता क्यों कि आपके मन पर इतने विचार इकट्ठे हैं, आपकी चेतना इतने विचारों से दबी है और पीड़ित है और परेशान है कि मैं भी उसमें थोड़े से विचार जोड़ दूं तो आपका भार और बढ़ जाएगा, उस भार से आपको मुक्ति नहीं होगी। इसलिए विचार कोई आपको देना नहीं चाहता हूं। वरन आकांक्षा तो यही है कि किसी भांति आपके सारे विचार छीन लूं। अगर आपके सारे विचार छीने जा सकें तो आपमें ज्ञान का जन्म हो जाएगा। यह जान कर आपको आश्चर्य होगा कि विचार अज्ञान का लक्षण है, विचार ज्ञान का लक्षण नहीं है। एक अंधे आदमी को इस भवन के बाहर जाना हो तो वह विचार करेगा कि दरवाजा कहां है? और जिसके पास आंखें हैं वह विचार नहीं करता कि दरवाजा कहां है? दरवाजा उसे दिखाई पड़ता है। दरवाजे का दिखाई पड़ना एक बात है और दरवाजें के संबंध में विचार करना दूसरी बात है। केवल वे ही विचार करते हैं जिन्हें कुछ दिखाई नहीं पड़ता है। केवल अंधे ही प्रकाश के संबंध मे...