संकल्प में दृढ़ता नही है तो सफलता भी नहीं है! मनोज श्रीवास्तव सहायक सूचना निदेशक देहरादून!

 



संकल्प में दृढ़ता नही है तो सफलता भी नहीं है। जब किसी बात में दृढ़ संकल्प रखते हैं तभी सफलता मिलती है। दृढ़ संकल्प वाले ही माया पर जीत प्राप्त करते हैं। यदि दृढ़ संकल्प नहीं रखते हैं तो माया से हार खाते हैं और माया को परखने में धोखा खा जाते हैं। लेकिन, आत्मा के प्रति दृढ़ संकल्प रखने वाला परखने में कभी धोखा नहीं खाता है। 


जब हम जिम्मेदारी का संकल्प लेते हैं तब हमें दूसरो से और परमात्मा से स्वतः सहयोग मिलने लगता है। जब हम जिम्मेदारी लेते हैं तब मुश्किल भी सहज बन जाता है। जिम्मेदारी दी नही जाती बल्कि जिम्मेदारी ली जाती है। 


यदि परमात्मा पर विश्वास करते हैं तब किसी बात के लिए जिम्मेदार हम नहीं बल्कि परमात्मा हो जाता है। इसके बाद हमें अपना बोझ उठाने की जरूरत नहीं पड़ती। जो व्यक्ति परमात्मा में विश्वास नहीं करता है उन्हें बोझ उठाने की आदत होती है, फिर उनके दिमाग में व्यर्थ संकल्प चलता है। यह न हो जाए, वह न हो जाए, यह सभी व्यर्थ का बोझ है। इसलिए सभी व्यर्थ के बोझ को परमात्मा के ऊपर छोड़ दें। परमात्मा के ऊपर छोड़ने से मेहनत कम, किन्तु सफलता अधिक मिलेगी और उन्नति ज्यादा मिलेगी, हम सहज हो जाएंगे। 

 

हमें हिम्मत रखनी है एक कदम हिम्मत, हजार कदम मदद की, हिम्मतहीन होने पर हम क्यों या क्या के क्योश्चन में उलझ जाते हैं। क्यों और क्या के प्रश्न के क्यू, कतार लग जाती है। इसके लिए हमें संकल्पों पर फुल स्टाॅप लगाना होगा। संकल्पों पर फुल स्टाॅप लगाने के लिए संकल्पों पर ब्रेक लगाना होगा और पाॅजीटिव साइड लेकर किनारे हो जाना होगा। क्योश्चन वाले प्रजा में आ जाते हैं और फुल स्टाॅप लगाने वाला राजा बन जाते हैं। 

स्वयं का परिवर्तन ही विश्व के परिवर्तन का आधार है। दूसरों के पहले अपने भीतर झांककर देखें। शरीर नहीं बल्कि आत्मा की स्टेज इतनी ऊंची हो कि बाहर की परिस्थिति छोटी लगने लगे। तीव्र पुरूषार्थ का सहज साधन है दृढ़ संकल्प। सोमान, सेल्फ रिस्पेक्ट में रहने के लिए दृढ़ संकल्प करना है लेकिन इसके विपरित हम ईगो में रहने, अभिमान में रहने के लिए दृढ़ संकल्प कर लेते हैं। वास्तव में मैं शरीर नही, बल्कि आत्मा हूं। इसलिए शरीर के प्रति नहीं बल्कि आत्मा के प्रति संकल्प रखना है।


अपने आप से पूछें कि अपने भीतर कितना परिवर्तन लाएं हैं। स्वयं में परिवर्तन लाने से सहज बन सकेंगे, कोई भी स्वभाव, संस्कार और बोल व्यर्थ न होकर यथार्त रहे। व्यर्थ को परिवर्तन करने का श्रेष्ठ साधन है दृढ़ संकल्प करके सोचा और किया। दोनों को एक कर देना है। इसके लिए चेक करके चेंज करना होगा, ऐसा करने पर स्वयं के परिवर्तन की मशीनरी फास्ट स्पीड से चलेगी। 


अभी तक हमारे सोचने और करने में अंतर है। हमारा सोचना और कहना बहुत ज्यादा होता है, करना कम होता है। यह करेंगे, वह करेंगे यह कहना बहुत आसान होता है, लेकिन करना कम होता है। कहते हैं तेरा, मानते हैं मेरा। वादे बहुत करते हैं कि आज के बाद बदल कर दिखाएंगे, आज यह बात छोड़कर जा रहे हैं। आज यह संकल्प करते हैं। लेकिन, हमारे कहने और करने में अंतर होता है। सोचने और करने में अंतर होता है।  


परिवर्तन का आधार है दृढ़ संकल्प करना। पवित्रता की प्रतिज्ञा कि मरेंगे, मिटेंगे, सहन करेंगे, मार खाएंगे, घर छोड़ देंगे, लेकिन पवित्रता की प्रतिज्ञा पर कायम रहेंगे। शेरों के संगठन में कुछ सोचा नही जाता, कुछ देखा नही जाता है, बल्कि करके दिखाया जाता है। जो लक्ष्य रखा जाता है, उस लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए सहन करेंगे, त्याग करेंगे, बुरा भला सुनेंगे, परीक्षाओं को पास करेंगे दिखाएंगे। अथार्त लक्ष्य को प्राप्त करके ही छोड़ेंगे। इस प्रकार के मैदान में आने वाले निंदा, स्तुति, मान-अपमान सभी को पार करने वाले होते हैं।

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