बदलता तो आदमी है वक्त सिर्फ बहाना है
बदलता तो आदमी है वक्त सिर्फ बहाना है!
मेरा मकसद तो तुम्हे सिर्फ बस जगाना है!!
तुमने अपना जमीर खो डाला!
बीज हैवानियत का बो डाला!!
चन्द पैसों के वास्ते तुमने!
अपने रिश्तों को आज धो डाला!!
कितना गिर जाएगा तू क्या तेरा ठिकाना है!
मेरा मकसद तो तुम्हे सिर्फ बस जगाना है!!
तुमने हैवानियत की हदें तोड़ डालीं हैं!
बेईमानी की सभी ख्वाहिशें संभाली हैं !!
तूने सोचा कि क्या कमाया है ?
हांथ दोनों अभी भी खाली हैं!!
सारे कर्मों का फल चुकाना है!
मेरा मकसद तो तुम्हे सिर्फ बस जगाना है!!
तूने वादे किए थे लोगों से!
तेरा मकसद तो कुछ रहा होगा!!
शपथ भी खाई होगी याद करो!
कुछ ना कुछ उसमें भी कहा होगा!!
जो भी आया है सच में सिर्फ उसे जाना है!
मेरा मकसद तो तुम्हे सिर्फ बस जगाना है!!
रचना = स. संपादक शिवाकांत पाठक उत्तराखंड दैनिक साप्ताहिक विचार सूचक समाचार पत्र सूचना एवम् प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त📞 9897145867📱
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