डरना नहीं,कृपया एक बार पूरा पढ़े आपका जीवन बदल देगा कड़ुआ सच!
समाचार संपादक शिवाकांत पाठक!
मेरे एक अभिन्न मित्र ने आप बीती घटना से रूबरू कराते हुए कहा कि मेरी भेंट एक बार एक निःशुल्क सेवी सिद्ध तान्त्रिक सन्यासी से हो गयी। उसका नाम था--भुवनेश्वर बाबा।_
वह सितलाघाट मोहल्ले में एक मकान किराये पर लेकर रहते थे। तंत्र-मन्त्र में उन दिनों विशेष रूचि नहीं थी मेरी। पर, हाँ, जिज्ञासा और कौतूहल अवश्य था मेरा। उसी जिज्ञासा और कौतूहलवश कभी-कदा चला जाया करता था बाबा के पास।
एक दिन बातों के बीच में मैंने वह घटना सुनाई और उसका समाधान चाहा तो बाबा पहले तो थोड़े गम्भीर हो गए फिर बोले--
_यह कोई आश्चर्यजनक और असम्भव बात नहीं है। जहाँ जो घटना अचानक घटती है, वहाँ, उस स्थान पर दीर्घ काल तक के लिए अपनी अमिट छाप छोड़ देती है जिसे विशेष साधनों द्वारा पुनः देखा जा सकता है।_
क्या यह सम्भव है ?
~हाँ, बिलकुल सम्भव है। जो इसके विज्ञान को जानते-समझते हैं, वे भूतकाल में घटी घटना को वर्तमान में प्रत्यक्ष कर सकते हैं
वह विज्ञान क्या है ?
~वह एक विज्ञान है जिसका नाम है--'क्षण विज्ञान'। उसके सिद्धान्त के अनुसार जिस वायवीय वातावरण में मनुष्य रहता है, उसमें एक विशेष प्रकार की विद्युत् चुम्बकीय ऊर्जा घनीभूत है।
_वह 'ईथर' से भी सूक्ष्म और शक्तिशाली है। उसके परमाणु दो प्रकार के होते हैं--पहले प्रकार के परमाणु ध्वनि ग्रहण करते हैं और दूसरे प्रकार के परमाणु दृश्य को। दोनों ग्रहण तो होते हैं एक साथ लेकिन उसके प्रकट होने में अन्तर हो जाता है समय का। प्रकाश की गति में और ध्वनि की गति में बहुत अन्तर होता है। दोनों की गति में एक मील प्रति सेकेण्ड का अन्तर समझना चाहिए। जितनी तेजी से घटना घटती है, उसी तेजी से परमाणु दृश्य और ध्वनि को ग्रहण करते हैं। इस प्रकार के दृश्य और इस प्रकार की ध्वनियां वातावरण में काफी दिनों तक रहती हैं।_
बाबा की ये सारी सैद्धांतिक बातें मेरे गले के नीचे नहीं उतरीं। शायद बाबा मेरे भाव को समझ गए। बोले--इसी मकान में और इसी कमरे में दस वर्ष पूर्व एक नवयुवती की हत्या कर दी गयी थी।
अच्छा !
मैं आश्चर्य से बोला--मगर मैं इसी मोहल्ले के करीब रहता हूँ, मुझे तो इस हत्या का पता ही नहीं चला।
_चलता भी कैसे ? मारकर लोगों ने इसी मकान में लाश दफना दी और सबेरा होने पर यह अफवाह उड़ा दी कि वह युवती माल-मत्ता लेकर कहीं भाग गयी।_
हाँ, आपने ठीक कहा--मैंने भी ऐसा ही सुना था। मगर आप कहना क्या चाहते हैं ?
क्या तुम दस वर्ष पूर्व के हत्या के दृश्य को देखना चाहोगे ?
क्या आप उसे दिखा सकते हैं ?
क्यों नहीं ?--बाबा हंसकर बोले--अभी दिखा सकता हूँ।
_बाबा का इतना कहना था कि मैंने देखा--कमरे के एक कोने में दो व्यक्ति बैठे शराब पी रहे हैं। थोड़ी देर बाद एक युवती कमरे में आई और वह भी बैठकर उन लोगों के साथ शराब पीने लगी। बाद में तीनों नशे में बहकने लगे। एक युवती की ओर मुंह करके बोला--क्यों री पिपरिया ! तू मेवा का साथ छोड़ेगी या नहीं, बोल, आज साफ-साफ मुझे बता दे।_
नशे में झूमती हुई युवती ने जवाब दिया--नहीं, कभी नहीं, मैं मेवा का साथ कभी नहीं छोडूंगी। वह मेरा ब्याहता है। ब्याहता का साथ कैसे छोड़ दूँ ? मुझसे ऐसा....
_युवती का वाक्य अभी पूरा नहीं हुआ था कि वह व्यक्ति अपनी जगह से उठा और उछलकर युवती की छाती पर चढ़ बैठा और दोनों हाथों से उसका गला दबाने लगा। दूसरे ही पल 'गों-गों'की आवाज़ से वातावरण गूंजने लगा। थोड़ी ही देर में युवती का सिर एक ओर लटक गया। वह मर चुकी थी।_
अचानक मेरे सामने से सारा दृश्य गायब हो गया। वातावरण भी पहले जैसा हो गया।
_जैसे 'क्षण विज्ञान' के सिद्धांत के अनुसार बाबा ने पूर्व में घटी घटना को वर्तमान में परिवर्तित कर दिखलाया था, उसी प्रकार उस विज्ञान के आधार पर किसी भी घटना को वर्त्तमान में प्रत्यक्ष किया जा सकता है। यहाँ यह जानना जरुरी है कि वायवीय वातावरण में विद्यमान वह विद्युत् चुम्बकीय ऊर्जा का उद्गम विचारों की तरंगें भी हैं। विचारों के घनीभूत होने पर उनकी तरंगों से पैदा होकर वह ऊर्जा की कर्णिका द्वारा बाहर बिखर जाती है और बाह्य ऊर्जा नेत्रों से मिलकर विचारों को सूक्ष्म आकार भी दे देती है। इस तथ्य का पता वैज्ञानिकों को लग चुका है। इस पर प्रयोग भी किये जा चुके हैं और सफलता भी मिली है।_
15 अगस्त सन् 1963 को अमेरिका के टोरेंटो टेलीविजन स्टूडियो में एक ट्रक ड्राईवर को लाया गया था जिसका नाम था--थियोडर सेरीओस।
_अनेक वैज्ञानकों और गण्यमान व्यक्तियों की उपस्थिति में उसके हाथ में एक बिलकुल नया पोलराइड कैमरा दिया गया। सेरिओस ने केमरे के लेंस को अपनी आँखों के सामने रखकर एकाध मिनट तक उसको ध्यान से देखा और फिर शटर दबा दिया।_
भौतिक नियमों के अनुसार फोटो आना चाहिए था सेरिओस की आँखों का। पर फोटो आया एक किलेनुमा इमारत का। केमरे के सामने टकटकी लगाकर देखते समय सेरिओस ने इसी ईमारत की कल्पना की थी।
_इस सन्दर्भ में यह भी जान लेना चाहिए कि वह ऊर्जा मस्तिष्क में बराबर केन्द्रीभूत होती रहती है और वहाँ से बराबर विकीर्ण भी होती रहती है।_
'क्षण विज्ञान' के सिद्धांतों के आधार पर देहातीत अवस्था का अध्ययन करने पर पता चलता है कि आँखों से दिखलायी पड़ने वाली प्रेतलीला के मूल में बाह्य ऊर्जा ही एकमात्र है। किसी भी घटना के मूल में भय, क्रोध, घृणा, आवेश, उत्तेजना, प्रेम, स्नेह, करुणा आदि मनोवृत्तियां रहती हैं।
_इन्हीं मनोवृत्तियों के अनुसार विचारों का निर्णय होता है। जिस समय विचारों में जैसी वृत्तियाँ रहेंगी, उसी के अनुसार विचार तरंगों में वे ऊर्जा पैदा होंगी और पैदा होकर अदृश्य रूप से वातावरण में आकार का निर्माण भी करेंगी। घनीभूत विचारों में ही विद्युत् चुम्बकीय ऊर्जा का आविर्भाव होता है।_
यदि घनीभूत विचारों में हमारे संस्कार और हमारी अच्छी-बुरी वासनाएं भी रहती हैं, यदि ऐसे विचारों में संकल्प की दृढ़ता है तो वे ऊर्जा की सहायता से ईथर में बराबर तब तक बने रहेंगे, जब तक हमारी मृत्यु नहीं हो जायेगी।
_मरने के बाद ऐसे विचार ही हमारे लिए वातावरण की रचना करते हैं। शास्त्रों के अनुसार वे स्वर्ग-नर्क की रचना करते हैं हमारे लिए। वास्तविकता तो यह है कि न कहीं स्वर्ग है ओर न तो है कहीं नर्क का अस्तित्व ही। जो कुछ भी हैं, वे हैं हमारे अच्छे-बुरे कर्म और उनके संस्कार।_
स्वर्ग-नर्क की कल्पना इसलिए की गयी है कि हम बुरे विचारों, कर्मो और संस्कारों से बचें और अच्छे विचारों, कर्मों और संस्कारों का निर्माण करें।
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