वो भयानक सच जिसे सुनकर आप सोचने के लिए मजबूर हो जाएंगे!
स. संपादक शिवाकांत पाठक
मैं भारत के बुद्धिजीवियों से यह पूछना चाहता हूं कि क्या वे भारत के संविधान के बारे में विस्तार से जानकारी रखते हैं ? विस्तार से न सही सिर्फ संविधान के अस्तित्व पर एक नजर डालें- - हमारा संविधान चार स्तंभों पर आधारित है जैसे कि बैड, कुर्सी आदि चार पाए पर ही टिकी रहती है ! तो चार स्तंभ इस तरह से हैं पहला न्यायपालिका,दूसरा कार्य पालिका, तीसरा विधायका , और चौथा स्तंभ आप के सामने है पत्रकारिता जो वास्तव में सच्ची समाज सेवा के जुनून में या तो अपना व अपने परिवार का पेट नहीं भर पाता या फिर मजबूरियां उसे बिकने पर मजबूर कर देती हैं उसे शासन, प्रशासन, या सरकार ना तो सैलरी देती हैं ना ही सुरक्षा और न ही मदद न गाड़ी ना पेट्रोल कुछ भी नहीं क्यों ? क्योंकि वह जनता की आवाज उठाता है अपनी जान हथेली पर लेकर तमाम गैर कानूनी कामों का पर्दा फाश करता है लेकिन यदि ईमानदार है तो उसकी जिंदगी नर्क बन जाती है सरकार को छोड़ो समाज भी उसका साथ या मदद के लिए हांथ नहीं बढ़ाती , न्यायपालिका का काम सभी को निष्पक्ष रूप से न्याय प्रदान करना है तो क्या काम सच में बखूबी तौर से अंजाम दिया जा रहा है हम बात भारत की कर रहे हैं जहां इंसान कागजों में मृत है व अपने जिंदा होने के लिए अनशन आंदोलन के लिए मजबूर है इसके एक नहीं बल्कि तमाम उदाहरण सामने आ चुके हैं साथ ही आगरा उत्तरप्रदेश की जेल में एस सी एक्ट के अंतर्गत झूठे बलात्कार के जुर्म में 20 साल की सजा काट चुके विष्णु तिवारी को अदालत ने निर्दोष होने पर रिहा कर दिया परिवार के सदस्यों की मौत पर भी पैरोल पर भी नहीं जाने दिया तो फिर गलती किसकी है और इस गलती को जानबूझ कर अनदेखा करने वाले पढ़े लिखे डिग्रीधारी लोगों के पास क्या जवाब है ?
आप थोड़ा सोच कर देखें कि 40% अंक लाने वाले को वरीयता वह भी आजाद होने से अब तक जब कि नियम कानून के मुताबिक ये कब तक के लिए किया गया था लेकिन वोटों की राजनीति के लिए सभी दल मजबूर दिखे आखिर क्यों ? फिर शिक्षा का महत्व कहां रह गया?
आरोपी को तत्काल रिहा करने के आदेश
इतना ही नही विष्णु द्वारा जेल से दाखिल अपील भी 16 साल डिटेक्टिव रही. सुनवाई तब हो सकी, जब विधिक सेवा समिति के वकील ने 20 साल जेल मे कैद रहने के आधार पर सुनवाई की अर्जी दी. हालाकि कोर्ट ने दुराचार का आरोप साबित न होने पर आरोपी को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है.
कार्यपालिका के बारे में आप सभी जानते हैं कि हर काम के लिए आपको रिश्वत देना पड़ती है साथ ही सी बी आई द्वारा मारे गए छापे में तमाम आई ए एस करोड़पति निकले तो फिर यहां हमारे देश में कौन है जो खुद को बुद्धिजीवी समझने की भूल कर रहा है यहां तो अंधे पीसते है और कुत्ते खा जाते हैं यही चल रहा है वर्षों से, चलता भी रहेगा क्यों कि ,सब पढ़े लिखे बेवकूफ हैं ना ???
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