क्या तुमने देखा है जिंदा मुर्दों को ? नहीं तो पढ़िए सच्चाई !
शिवाकांत पाठक स. संपादक वी एस इन्डिया न्यूज!
14 साल से खुद को जिंदा साबित करने की कोशिश में ये शख्स, लड़ चुका है राष्ट्रपति चुनाव
- वाराणसी जिले के शिवपुर विधानसभा सीट से संतोष सिंह ने नामाकंन फाइल किया है।
- संतोष इससे पहले 2012 में राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़े, लेकिन खुद को जिंदा साबित न कर सके।
- उन्होंने बताया- 2003 में मुंबई के झवेरी बाजार में हुए बम ब्लास्ट में मेरे गांव के कुछ लोगों और रिश्तेदारों ने मुझे मृत घोषित कर दिया।
- सरकारी कागजों पर मुझे मरा घोषित कर कर्मकांड भी कर दिया।
- 2004 में जब मैं गांव पहुंचा, तो पता चला मैं मुर्दा घोषित हो गया हूं। तब से आज तक मेरा नाम मुर्दों की गिनती में ही आता है।
नाना पाटेकर को पसंद था इनके हाथ का खाना, लेकर चले गए थे मुंबई
- वाराणसी के रहने वाले संतोष कहते हैं- नाना साहेब से मेरी मुलाकात 2002 में आंच फिल्म की शूटिंग के दौरान हुई थी।
- यह शूटिंग मेरे गांव में ही हो रही थी। फिल्म से जुड़े टीम मेंबर राजेश सिंह मेरे दूर के रिश्तेदार लगते हैंं
- उन्होंने ही मेरी मुलाकात नाना से करवाई थी। जब तक वो बनारस में रहे, मैं उन्हें बजड़ा की लिट्टी और चने का साग बनाकर खिलाता था, जो उन्हें बहुत पसंद था।
- जाते समय वो मुझे भी साथ मुंबई ले गए और अपने घर में बतौर कुक रख लिया।
- मेरे साथ निर्णायक नाना साहेब और नायक अनिल कपूर का आशीर्वाद है, इसलिए मेरी इच्छा है कि मैं यह चुनाव जीतकर जिन्दा हो जाऊं।
- चुनाव जीतने के बाद मैं प्रदेश के करीब 50 लोगों को जिन्दा करूंगा, जो मुर्दा घोषित किए जा चुके हैं। कुछ इसी तरह से उत्तर प्रदेश के
गोरखपुर जिले में मुस्तफाबाद गांव में जियाऊ पुत्र हरिद्वार को कागजों में मृत घोषित कर दिया गया व उसके पुत्र चौथी के नाम सारी संपत्ति कर दी जब कि इस नाम का कोई पुत्र उसके था ही नहीं समाधान दिवस में अधिकारियों ने न्यायालय जाने की सलाह दे डाली उप जिलाधकारी सुरेश कुमार राय व तहसीलदार ने कहा मामले की जांच कराई जा रही है ,वहीं गोरखपुर जिले के भक्साकाफी गांव के
रामकृष्ण पुत्र हरदाश को 12 दिसंबर 2015 को कागजों में मृत घोषित कर जमीन दूसरे के नाम कर दी गई जिसने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी से गुहार लगाई व बराबर तहसील के चक्कर काटते रहे वैसे अभी तक यू.पी में 569 कागजों में मृत लोगों को जिंदा करने में सफलता प्राप्त हुई है लेकिन अफसोस यही है कि आज भी हमारी लचर व्यवस्था को मजबूत करने के लिए किसी भी जिम्मेदार अधिकारियों नेताओं या जनता के बुद्धिजीवी कहलाने वाले लोगों को जरूरत महसूस नहीं हुई क्यों कि देश आगे बढ़ रहा है पीछे कौन देखने की जहमत उठाएगा कि कितने लोग घुट घुट कर जी रहे हैं कानून तो बदलते हैं नए बिल पास होते हैं लेकिन सिर्फ राजनीति को चमकाने के लिए ही, आज हम जिस बरबादी की दहलीज पर खड़े हो कर मेरा भारत महान कह रहे हैं शायद बेबस लाचार न्याय से वंचित लाखो लोगों के दिलों पर खंजर चला रहे हैं कब जागोगे जब तुम भी मुर्दों की लिस्ट में डाल दिए जाओगे , याद रखना सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या किया????? तुम होश में आओ अव्यवस्था का विरोध करो वरना आने वाली पीढ़ी तुम्हे माफ नहीं करेगी !
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