झूठ के साम्राज्य में सत्य की परिकल्पना वर्तमान समय की कसौटी में कितनी सच्चाई है,,???? स.संपादक शिवाकांत पाठक।
एक वह भी समय था जब माता पिता एवम गुरू कहते थे कि कभी भी झूठ मत बोलना क्यों कि झूठ बोलना पाप होता है, उस समय पाप और पुण्य की परिभाषा छोटे छोटे बच्चों को मालूम थी,, उन्हे डर लगता था गलत कामों से,, स्कूल की पुस्तकों में भी वास्तविक जीवन की सफलता से सम्बन्धित तमाम कहानियां बच्चों को एक नई दिशा देने का कार्य करतीं थीं,, उस समय ऐसे लोग भी थे जिन्हे सारे जीवन जुखाम जैसी बीमारी भी नहीं हुआ करती थी,, तीस चालीस किलोमीटर पैदल सफर करना उनकी आदत बन गई थी,, बसें ऑटो रिक्शा आदि नहीं थे,, थानेदारों के पास दविश देने या फिर भ्रमण करने हेतु घोड़े हुआ करते थे,, विद्युत नहीं थी,, सरकारी विभागों में छत पर टंगे पंखे को एक सेवा कर्मी खींचता था,, उस समय वृक्ष बहुत थे,, दूर से वृक्ष अधिक दिखने पर गांव की पहचान होती थी,, उस समय अंग्रेजी का कोइ भी महत्व नहीं था, और आज,,,????
उस समय एक दूसरे के प्रति बेहद लगाव था,, शादियों में गांव के लोग बिना किसी स्वार्थ के कार्य करतें थे,, वह समय मुझे याद है , लेकिन शायद आप इस बात पर संदेह कर रहे होंगे,,
घर का अनाज घर की सब्जी हुआ करती थी,, बड़ा ही आनंद दायक जीवन था,, मेहमान आने का इंतजार किया जाता था, बच्चे गर्मियों की छुट्टियों में मामा के यहां जाते थे,, और मामा शब्द में दो बार मां का समावेश है इसलिए भांजे की सेवा में मामा तत्पर रहते थे,,
आज हम विकास की चरम सीमा को लांघ चुके हैं,,
बाजार का दूध, दही, सब्जी, आटा, दालें, मसाले, जिनके उत्पादको को मानव जीवन के हित से कोइ भी सरोकार नहीं है, हम इस्तेमाल करने के लिए मजबूर हैं,, हिंदुस्तानी होकर भी अंग्रेजी को महत्व देना हमारी मजबूरी है,,
हमारी जरूरतें इतनी ज्यादा बढ़ गई हैं कि दुनियां कल कारखानों से भरी पड़ी है, कारखानों से निकलने वाली दूषित वायु और पानी संपूर्ण विश्व के लिए खतरा साबित हो रहा है,, अपनी गलती का पश्चाताप न कर मनुष्य कभी भगवान को तो कभी प्रकृति को दोष दे रहा है,, अनावश्यक धन कमाने हेतु देश, और आम जन मानस के साथ चाल फरेब, झूठ, बेईमानी को ही अपना किरदार समझ रहा है,, इन सभी दुष्कर्मों के परिणाम भोगने के वावजूद भी मानव खुद को अपनी बुराइयों के लिए आत्मसात करने को तैयार नहीं है,,
कभी तीर्थो में जाकर अपने मन को हल्का करने की कोशिश करता है तो कभी ढोंगी बाबाओं के दर्शन के लिए वी आई पी सुविधा तलाश करता है, लेकिन कर्मों पर गौर नहीं करता,,
, तुलसी बाबा यह भी लिख गए हैं;
झूठइ लेना झूठइ देना। झूठइ भोजन झूठ चबेना॥
बोलहिं मधुर बचन जिमि मोरा। खाई महा अहि हृदय कठोरा॥
यह भी कि;
ऐसे अधम मनुज खल कृतजुग त्रेतॉं नाहिं।
द्वापर कछुक बृंद बहु होइहहिं कलजुग माहिं॥
यानी, ऐसे नीच और दुष्ट मनुष्य सतयुग और त्रेता में नहीं होते। द्वापर में थोड़े से होंगे और कलियुग में तो इनके झुंड-झुंड होंगे।
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