सरकारों की वादाखिलाफी का नतीजा भुगत रही है जनता।
स.संपादक शिवाकांत पाठक।
रिपोर्ट शाहिद अहमद,,,हमारे देश में वायदे करना और भूल जाना एक दस्तूर बन चुका है,, ज्यादातर देखा गया है कि जिन बातों का विरोध करने के बाद पार्टियां सत्ता में आतीं हैं उन्ही उन्ही को लागू करके जनता को सोचने के लिए मजबूर कर देती हैं,,,, ऐसे तमाम मुद्दे हैं जो जनता के जेहन में आज भी सावल बन कर उठ रहे हैं,,,
डॉ. चन्द्रकांत लहारिया, जन नीति और स्वास्थ्य तंत्र विशेषज्ञ
कोविड की दूसरी लहर में देश के लोगों को इलाज कराने में संघर्ष करना पड़ा था। भारत दुनिया की फार्मेसी है, लेकिन यहां जरूरी दवाओं की कमी रही। दुनिया की वैक्सीन राजधानी होने के बावजूद लोगों को कोरोना के टीके लगवाने के लिए दर-बदर भटकना पड़ रहा है। सवाल उठता है कि महामारी से लड़ने के लिए जो भी कुछ जरूरी था, भारत उसके लगभग हर कदम पर क्यों लड़खड़ाया? दरअसल सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के जितने भी वादे किए जाते हैं उनको जल्द ही भुला दिया जाता है और उनका क्रियान्वयन लगभग न के बराबर होता है।
स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में भारत बांग्लादेश, चीन, भूटान और श्रीलंका समेत अपने कई पड़ोसी देशों से पीछे है. मेडिकल जर्नल 'द लैनसेट' में प्रकाशित 'ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिजीज स्टडी' के अनुसार स्वास्थ्य सेवा से जुड़ी 195 देशों की सूची में भारत को 154वें स्थान मिला है.
गौर करें कि आंकड़े क्या बता रहे हैं,,,
वर्ष 2016-17 में हेल्थ सूचकांक में उत्तराखंड को 45.22 अंक हासिल हुए थे और देश के 21 बड़े राज्यों में उत्तराखंड को 17वीं रैंक दी गई थी। लेकिन, 2017-18 के स्वास्थ्य सूचकांक बेहद निराशाजनक है। इस बार उत्तराखंड को 40.20 अंक प्राप्त हुए हैं और राज्य के रैंक दो स्थान नीचे खिसककर 19वें स्थान पर पहुंचे गई है। केवल बिहार और उत्तर प्रदेश ही अब स्वास्थ्य सूचकांक में उत्तराखंड से पीछे रह गये हैं। यानी कि राज्य के स्वास्थ्य सूचकांक में एक वर्ष के दौरान 5.02 अंक की गिरावट आई है। बिहार और उत्तर प्रदेश क्षेत्रफल, जनसंख्या और प्रति व्यक्ति आय की दृष्टि से उत्तराखंड के काफी पीछे हैं, इसके बावजूद स्वास्थ्य सूचकांक में उत्तराखंड का इन राज्य के साथ नजर आना स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति राज्य सरकार की बेरुखी की ओर इशारा करता है। खास बाद यह है कि राज्य पलायन आयोग की रिपोर्ट में राज्य में पर्वतीय क्षेत्रों से 8 प्रतिशत लोगों ने स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में पलायन किया।
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