सत्य से भटकाव ही मानव जीवन के भविष्य हेतु खतरे का संकेत।
स.संपादक शिवाकांत पाठक।
( याद रखना तुम अपनी चालाकियों से लोगों को भ्रमित कर सकते हो प्रकृति को नहीं प्रकृति जब तुम्हारे कर्मों का परिणाम घोषित करेगी तो तुम्हे दुनियां की कोई भी शक्ति नहीं बचा सकती यही सत्य है )
( आज का मनुष्य अपने जीवन का शतप्रतिशत समय अपनें विकाश में लगाता है बिना स्वार्थ के वह किसी भी कार्य को करना अनुचित समझता है जबकि इस संसार को बनाने वाले ने इसकी रचना बिना किसी स्वार्थ के की है )
एक महात्मा से एक व्यक्ति ने पूछा कि फुटबाल को लोग लातों से मारते हैं और वो बहुत तेज़ लुढ़कती है क्यों,,,
महात्मा ने मुस्कराते हुए जवाब दिया,,, क्यों कि फुटबाल अंदर से खाली होती जो अंदर से खाली है उसे तो ठोकरें खाने के लिए मजबूर होना ही पड़ेगा,, ऐसा जवाब दूरगामी सोच के व्यक्ति ही दे सकते हैं,,
आज हमारी नई पीढ़ी जिसे देश का भविष्य कहा जाता है वह निरंतर अपराध और दुष्चरित्र एवम नशे की ओर अग्रसर है,, क्यों,,, ,, जवाब दो,, ये युवा पीढ़ी भारत ही नहीं अपितु विष्व के लिए आने वाले कल का प्रतीक हैं,,
आज का मानव भौतिक सुख सुविधाओं को प्राप्त करने हेतु अनैतिक तरीके से धन लाभ के लिए समर्पित है,, जबकि यह तो सोचना सभी का फर्ज बनता है कि अब तक हमने क्या खोया है और क्या पाया,, आज सभ्यता संस्कृति का विलुप्त होना, प्रकृति का दोहन होना, निजी फायदे के लिए मिलावटी खाद्य पदार्थों का उत्पादन करना,, समाज, राष्ट्र, परिवार के साथ साथ संपूर्ण मानव जाति के साथ विश्वास घात करने में हम पूरी तरह से महारत हासिल कर चुके हैं,, आज की शिक्षा केवल लूट का पर्याय बन चुकी है,, मिस इंडिया के खिताब को पाने के लिए नग्नता की होड़ लगी हुई है,, जिन माताओं बहनों को अपने बच्चों को संस्कार देना चाहिए वे डांस का विडियो फेस बुक इंस्ट्राग्राम पर डाल कर समाज को एक नई तबाही का शिकार बना रहीं हैं,,,जिस परिवार की स्त्रियां जितने कम कपड़ों में हैं उन्हें वी आई पी माना जाता है,, आज के युवा वर्ग को सभ्यता, संस्कृति, शिष्टाचार, पाप और पुण्य के बारे में जानकारी नहीं है,, परिवार के भरण पोषण हेतु माता पिता दोनो को काम पर निकलना पड़ता है,, इसके पीछे वास्तविकता क्या है,,, कभी सोचा आपने,,, जिस को जिस उम्र बेटो को संस्कार देना चाहिए वह मां भी परिवार चलाने के लिए मेहनत मजदूरी करने हेतु मजबूर है तो फिर संस्कार कौन देगा भारत के भविष्य कहलाने वाले बच्चों को,,
आज लोग तीर्थो की ओर भाग रहे हैं, प्रवचन के लिए जिन प्रवक्ताओं को बुला रहे हैं वे मोटी रकम तय करते हैं फिर प्रवचन में कहते है कि माया मोह को त्याग दो,,,
जिसने तुम्हे जीवन दिया उससे बढ़ कर तुम्हारा शुभ चिंतक कौन हो सकता है,,
यतः मूलम् नरः पश्येत् प्रादुर्भावम् इह आत्मनः ।
कथम् तस्मिन् न वर्तेत प्रत्यक्षे सति दैवते ॥
अर्थात जब मनुष्य की स्वयं की उत्पत्ति के मूल में पिता हैं, तो वह पिता के रूप में विद्यमान साक्षात देवता को क्यों नहीं पूजता?
रामायण में यह भी कहा गया है-
सत्यं माता पिता ज्ञानं धर्मो भ्राता दया सखा।
शान्ति: पत्नी क्षमा पुत्र: षडेते मम बान्धवा:॥
अर्थात सत्य मेरी माता के समान है, ज्ञान मेरे पिता के समान है, धर्म मेरे भ्राता के समान है, दया मेरे मित्र के समान है तथा शांति मेरी पत्नी के समान है, क्षमाशीलता मेरे पुत्र के समान है। इस प्रकार ये छह गुण ही मेरे निकट संबंधी हैं।
माता-पिता अनेक दुख एवं कष्ट सहकर अपने बच्चों का पालन-पोषण करते हैं। बच्चे बड़े होकर सोचते हैं कि उन्होंने उनके लिए क्या ही किया है अथवा यदि कुछ किया है, तो यह उनका कर्तव्य था। कुछ लोग अपने माता-पिता को जीविकोपर्जन के लिए कुछ धन देकर सोचते हैं कि उन्होंने अपना ऋण उतार दिया, जबकि ऐसा नहीं होता। वे अपने माता-पिता का ऋण कभी नहीं चुका सकते। इस विषय में रामायण में कहा गया है-
यन्मातापितरौ वृत्तं तनये कुरुतः सदा
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