पूरा पढ़े ,आप इंसान हैं या नहीं जबाव मिल जाएगा! हरिद्वार
,!स. संपादक शिवाकांत पाठक!
हमारा उद्देश्य किसी की आलोचना या प्रशंसा करने का नहीं है बल्कि वर्तमान समय पर मनुष्यता से विपरीत दिशा की ओर जा रही मानव समाज को सही दिशा की ओर ले जाने का है आप से सर्व प्रथम एक सवाल है अपने ज्ञान के अनुसार उत्तर देने का प्रया करें ! यदि हम पहले से अधिक शिक्षित, विकसित, हो गए हैं तो दिनों दिन बढ़ती अपराध की घटनाएं मानव सभ्यता की नींव क्यों हिला रही हैं सरकारों के द्वारा चलाई जा रही तमाम योजनाएं , विकास, नियम, कानून आदि भ्रष्टाचार की भेंट क्यों चढ़ते जा रहे हैं ? बहुत ही पढ़े लिखे अधिकारी,कर्मचारी, वर्ग भी ज्ञान की वास्तविकता से दूर हैं आखिर क्यों ? हम मानव होकर भी मनुष्यता को कुचल रहे हैं व कुचलने वालों का सहयोग भी कर रहे हैं क्यों? बताएं एक पिता ने आपके जीवन के लिए सारे सुखों के उपयोग के साधन आपके लिए जुटा दिए धन, दौलत, मकान, बिजनेस, गाड़ी , सुंदर पत्नी सब कुछ फिर कोई आपसे पूछे कि इन सारी चीजों में तुम्हे कौन पसंद है? जिसने सारी चीज़ें उपलब्ध कराईं या प्राप्त सुखों के साधन कौन पसंद है आपको ?? जबाव में पिता नहीं स्त्री, धन, दौलत ही होगा ! तो फिर आप शिक्षित होने का दावा कैसे कर सकते हो??? जिस ईश्वर या पिता ने आपको यह अनमोल शरीर दिया , अनमोल सासें दी, जीवन दिया, जमीन, आसमान, पानी, सब कुछ दिया उसके लिए तुम्हारा भी कुछ उत्तर दायित्व बनता था क्या अपने उनका निर्वाहन किया???? जिस ओक्सीजन का आप अस्पताल में पेमेंट करते हो क्या उसी ओक्सीजन से आप जीवित नहीं है ??? तो फिर जबाव दो कि तुम मानव जीवन के लिए जहर घोल कर तमाम मिलावटी खाद्य सामग्री का व्यापार कर नाशवान दौलत के लिए क्यों गिर गए क्यों?? क्यों फूल सी नन्ही बेटियों के साथ बलात्कार करने के बाद उन्हें बेदर्दी से मौत के घाट उतारने लगे क्यों??? क्यों तुमने अपना जमीर चंद पैसों के लिए बेंच डाला जो पैसा तुम्हारे साथ नहीं जाना है क्यों ??? क्यों कि आज हमको वह शिक्षा स्कूलों में नहीं मिलती जिसकी आवश्यकता मानव जीवन के लिए बेहद आवश्यक है ! आज की शिक्षा मनुष्य को आत्मज्ञान प्रदान नहीं करती। कठोपनिषद 3/5 श्लोक ‘‘यस्त्वविज्ञानवान् भवत्ययुक्तेन मनसा सदा। तस्येन्द्रियाण्यवश्यानि दृष्टाश्वा इव सारथेः।।” में कहा है कि जो मनुष्य आत्म-ज्ञान-विज्ञान से हीन होता है वह विषयों में फंसा रहता है। आत्मज्ञान न होने से उसका मन चित्त की वृत्तियों को नियंत्रण में नहीं रख पाता। उसकी सभी इन्द्रियां अनियंत्रित रहती हैं। जिस प्रकार से किसी रथ में लगे अनियंत्रित घोड़ों से लक्ष्य पर नहीं पहुंचा जा सकता वही दशा आत्मज्ञान से रहित मनुष्य की होती है। वह अपने लक्ष्य धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की प्राप्ति से वंचित रहता है। अतः जीवन में अन्य सभी प्रकार के लौकिक ज्ञान के समान ईश्वर व जीवात्मा विषयक आध्यात्मिक ज्ञान की भी आवश्यकता मनुष्य को है जिसका मूल वेद में है और उसी का प्रकाश हमारे ऋषियों ने उपनिषदों व दर्शनों में किया है। कठोपनिषद बताती है कि आत्मज्ञान से हीन मनुष्य का मन और इन्द्रियां उसके वश में नहीं रहती और, अज्ञानतावश सन्मार्ग में न चलने के कारण वह अपने वास्तविक लक्ष्य पर नहीं पहुंच पाती हैं।
सच है
ReplyDelete