कंधों पर रख कर सरकारें हम दुनियां को चले y,,,,
कंधों पर रख कर सरकारें हम दुनियां को चले बताने!
दर्द हमारा कोई न जाने ,
दर्द हमारा कोई न जाने,,,,
संविधान की मंजिल में कहलाते हैं हम चौथा पाया !
प्रतिशोधित ज्वाला से हटकर हमने अब तक कुछ न पाया,,,,!!
नग्न किया थानों में हमको कभी हमें दुत्कारा !
जिसको जन जन तक पहुंचाया वो न हुआ हमारा!!
सच्ची कलम नहीं बिकती है अब कोई माने न माने!
दर्द हमारा कोई न जाने,,,,
तब तक कुर्सी है जब तक उसके पायों में दम है !
संविधान के स्तंभों में कौन किसी से कम है !!
प्रजातंत्र के गलियारों में बिके हुए हम सब हैं !
लालच की जब बात चली तब हम सब पीछे कब हैं !!
दर्द हमारा कोई न जाने ,,,,
दर्द हमारा कोई न जाने,,,,,
राष्ट्र हित में समर्पित रचना
रचनाकार
संपादक
शिवाकांत पाठक हरिद्वार उत्तराखंड
संपर्क ,9897145867
जो सोने का ढोंग कर रहे उनको अब हम चले जगाने!
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