स्वतंत्रता हेतु,,तोता बन कर असत्य का अनुकरण करने से अच्छा है सत्य बोलो।

 



संपादक शिवाकांत पाठक।


एक राजा ने उस पक्षी को कैद कर लिया जो खुले आसमान में गीत गा रहा था बड़ा ही सुंदर सुरीला गीत गा रहा था लेकिन राजा ने कहा बिना मेरी आज्ञा के गीत गाना अपराध है,, इसे पकड़ कर सोने के पिजड़े में बंद कर दो,, कुछ ही दिनों बाद एक बाबा राजा के महल के सामने से गुजरा और वह चिल्ला कर एक गीत गा रहा था कि यदि तुमको दुखों से मुक्ति पाना है तो सत्य को अपनाओ,, जैसे कि महावीर स्वामी ने कहा,, तुलसी दास जी महराज ने कहा, श्री कृष्ण ने भी गीता में कहा, स्वामी विवेकानंद जी ने भी कहा लेकिन किसी ने भी ध्यान नहीं दिया,, और उस पक्षी ने सुन लिया,,, बस फिर क्या था,,एक दिन सम्राट महल के भीतर था, कोई मिलने आया था। और पहरेदारों से सम्राट ने कहलवाया कि कह दो कि सम्राट घर पर नहीं है। उस पक्षी ने चिल्ला कर कहा कि नहीं, सम्राट घर पर है। और यह सम्राट ने ही कहलवाया है पहरेदारों से कि कह दो कि मैं घर पर नहीं हूं।

सम्राट तो बहुत नाराज हुआ।

सत्य से सभी लोग नाराज होते हैं। क्योंकि सभी लोग असत्य में जीते हैं। और वे जो सम्राट हैं--चाहे सत्ता के, चाहे धन के, चाहे धर्मों के, जिनके हाथ में किसी तरह की सत्ता है, वे तो सत्य से बहुत नाराज होते हैं। क्योंकि सत्ता हमेशा असत्य के सिंहासन पर विराजमान होती है। इसलिए सत्ताधिकारी सत्य को सूली पर चढ़ा देते हैं। क्योंकि सत्य अगर जीवित रहे तो सत्ताधिकारियों की सूली बन सकता है।

सम्राट ने कहा: इस पक्षी को तत्क्षण महल के बाहर कर दो।

महलों में सत्य का कहां निवास! वृक्षों पर बसेरा हो सकता है, लेकिन महलों में बसेरा सत्य के लिए बहुत कठिन है।

वह पक्षी निकाल कर बाहर कर दिया। लेकिन उस पक्षी को तो मन की मुराद मिल गई। वह आकाश में नाचने लगा। और उसने कहा: ठीक कहा था उस फकीर ने कि अगर मुक्त होना है तो सत्य एकमात्र द्वार है।

वह पक्षी तो नाचता था। लेकिन एक तोता एक वृक्ष पर बैठ कर रोने लगा और कहा: पागल पक्षी, तू नाचता है सोने के पिंजड़े को छोड़ कर! सौभाग्य से ये पिंजड़े मिलते हैं। ये सभी को नहीं मिलते। पिछले जन्मों के पुण्यों के कारण मिलते हैं। हम तो तरसते थे उस पिंजड़े के लिए, लेकिन तू नासमझ है; पिंजड़ों में रहने की भी कला होती है।

पिंजड़े में रहने की पहली कला यह है कि मालिक जो कहे, वही कहना। यह मत सोचना कि वह सच है या झूठ। जिसने सोचा, वह फिर पिंजड़ों में नहीं रह सकता। क्योंकि विचार विद्रोह है, और जिसके जीवन में विचार का जन्म हो जाता है, वह परतंत्र नहीं रह सकता है।

तूने विचार क्यों किया पागल पक्षी? विचार करना बहुत खतरनाक है। समझदार लोग कभी विचार नहीं करते हैं। समझदार लोग अपने कारागृहों में रहते हैं और अपने कारागृह को ही भवन समझते हैं, मंदिर समझते हैं। अगर ज्यादा ही तकलीफ थी तो भीतर से अपने पिंजड़े के सींकचों को सजा लेना था। सजाया हुआ पिंजड़ा घर जैसा मालूम पड़ने लगता है। और ध्यान रहे, अनेक लोग पिंजड़ों को सजा कर घर समझते रहते हैं; क्योंकि उन्होंने सजा लिया है। लेकिन सजाने से पिंजड़े में कोई फर्क नहीं पड़ता।

उस पक्षी ने तो सुना ही नहीं, वह तो खुशी से नाच रहा था, उसके पंख हवाओं में तौल रहा था! खुले आकाश में आ गया था!

लेकिन उस तोते ने कहा कि अगर पिंजड़े में रहने का मजा लेना है तो तोतों से कला सीखो। हम वही कहते हैं, जो मालिक कहते हैं। हम कभी वह नहीं कहते, जो सच है। हम इसकी चिंता ही नहीं करते हैं कि सत्य क्या है। हम तो वही कहते हैं, जो मालिक कहता है--वही हम कहते हैं। मालिक क्या करता है, यह नहीं कहना है। अपनी आंख से देखना नहीं है, अपने विचार से सोचना नहीं है। मालिक की आंख से देखना और मालिक के विचार से सोचना। तोता यह सब चिल्लाता रहा। और खुले पिंजड़े में जहां से पक्षी छूट गया था, तोता जाकर भीतर बैठ गया। पिंजड़े को द्वारपाल ने बंद कर दिया।

वह तोता अब भी उस महल के पिंजड़े में है। वह वही कहता है, जो मालिक कहते हैं। वह सदा वहीं बंद रहेगा, क्योंकि मुक्त होने का एक ही रास्ता है--सत्य। और तोते और सब-कुछ बोलते हैं, लेकिन सत्य कभी नहीं बोलते।


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