चलो धारा के संग विपरीत धारा में नहीं बहना।।
हमे भी पत्रकारों से यही एक बात है कहना ।
लिफाफा तुम भले लेना पड़ी लकड़ी नहीं लेना।।
संभल कर पांव रखना अब जमीं पर होशियारी से।
चलो धारा के संग विपरीत धारा में नहीं बहना।।
चला जो सत्य के पथ पर अकेला ही सदा पाया।
भगत सिंह, चंद्रशेखर को बचाने कौन था आया।।
हमारा आखिरी अंतिम सभी से है यही कहना।
चलो धारा के संग विपरीत धारा में नहीं बहना।।
तुम्हे सब लोग अब तो आखिरी खंभा समझते हैं।
कलम भयभीत क्यों है लोग शायद कम समझते हैं।।
कोइ भी साथ देगा इस गलत फहमी में मत रहना।
चलो धारा के संग विपरीत धारा में नहीं बहना।।
स्वराचित मौलिक रचना
स. संपादक शिवाकांत पाठक
हरिद्वार उत्तराखंड
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