एक अकेला व्यक्ति कब तक अन्याय का विरोध करेगा,,,?

 


संपादक शिवाकांत पाठक।




नवोदय नगर की सीमा पर कुष्ठ आश्रम बनाया जाए क्या यह न्याय है न्याय तो सभी का अधिकार होता है न्याय कभी जबरन थोपा जा सकता यदि यह न्याय होता  तो फिर आम जन मानस आज इसके विरुद्ध आवाज नहीं उठाता,, कुष्ठ आश्रम किसी एक व्यक्ति के लिए भविष्य में खतरे का संकेत नहीं बल्कि सभी की आने वाली पीढ़ियों के लिए महा भयानक खतरे का संकेत है आज यदि हम मुखर होकर एक जुट होकर इस अन्याय का विरोध नहीं करते तो यह सच है कि हमारी आने वाली संताने इस बीमारी स्वयं को बचाने में असमर्थ असहाय महसूस करेंगी जिसके लिए हम स्वयं दोषी होंगे,,न्याय वह सर्वमान्य वस्तु है जो प्रत्येक मनुष्य के लिए अनिवार्य है। जबकि अन्याय वह बुराई, जिसके खिलाफ हर किसी को आवाज उठानी चाहिए। चाहे वह किसी भी वर्ग, समुदाय या जाति का हो। न्याय एक बुनियादी सिद्धांत है, जिस पर शुरू से ही विचार होता आया है, लेकिन वर्तमान समय में हालात बदल रहे हैं। न्याय एक जटिल अवधारणा बनती जा रही है, जबकि अन्याय एक सरल विचारधारा। कहीं न कहीं हर वर्ग का प्राणी अन्याय झेल रहा है। इसकी वजह, न्यायिक प्रक्रिया तक पहुंचने में आने वाली जटिलताएं। प्लेटो ने भी कहा था, यदि प्रत्येक मनुष्य समाज में रहकर अपनी योग्यता के अनुसार अपने लिए निर्दिष्ट कृत्यों को पूरा करता है तो वही न्याय है। हां, अगर असत्य के आगे झुक जाता है। किसी के हितों का हनन करता है, उसे अन्याय ही कहेंगे।

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