तीर्थो में वी आई पी दर्शन चढ़ावा किंतु भगवान की कृपा गरीबों पर पढ़िए सत्य घटना,,! संपादक शिवाकांत पाठक।

 



रामचरित मानस में गो स्वामी तुलसी दास जी महराज लिखते हैं कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने कहा कि,,

निर्मल जल मन सो मोहि पावा।

मोहि कपट छल छिद्र न भावा।।



अर्थात  ईश्वर को कपट छल (दिखावा या ढोंग) पसंद नहीं है , निर्मल जल का मतलब है स्वक्ष पानी जिसमें कि आपका चेहरा साफ दिखाई दे,, ऐसा मन होना चाहिए,,


पढ़िए एक सत्य घटना,,,




कृष्ण भगवान का एक बहुत बड़ा भक्त हुआ लेकिन वो बेहद गरीब था।


एक दिन उसने अपने शहर के सब से बड़े "गोविन्द गोधाम" की महिमा सुनी और उसका वहाँ जाने को मन उत्सुक हो गया।


कुछ दिन बाद जन्माष्टमी आने वाली थी उसने सोचा मै प्रभु के साथ जन्माष्टमी "गोविन्द गोधाम" में मनाऊँगा।


गोंविंद गोधाम उसके घर से बहुत दूर था। जन्माष्टमी वाले दिन वो सुबह ही घर से चल पड़ा।


उसके मन में कृष्ण भगवान को देखने का उत्साह और मन में भगवान के भजन गाता जा रहा था।


रास्ते में जगह जगह लंगर और पानी की सेवा हो रही थी, वो यह देखकर बहुत आनंदित हुआ की वाह प्रभु आपकी लीला ! मैने तो सिर्फ सुना ही था कि आप गरीबो पर बड़ी दया करते हो आज अपनी आँखों से देख भी लिया। 


सब गरीब और भिखारी और आम लोग एक ही जगह से लंगर प्रशाद पाकर कितने खुश है।


भक्त ऑटो में बैठा ही देख रहा था उसने सबके देने पर भी कुछ नही लिया और सोचा पहले प्रभु के दर्शन करूँगा फिर कुछ खाऊँगा ! क्योंकि आज तो वहाँ ग़रीबो के लिये बहुत प्रशाद का इंतेज़ाम किया होगा।


रास्ते में उसने भगवान के लिए थोड़े से अमरुद का प्रशाद लिया और बड़े आनंद में था भगवान के दर्शन को लेकर।


भक्त इतनी कड़ी धूप में भगवान के घर पहुँच गया और मंदिर की इतनी प्यारी सजावट देखकर भावविभोर हो गया।


भक्त ने फिर मंदिर के अंदर जाने का किसी से रास्ता पूछा।किसी ने उसे रास्ता बता दिया और कहा यह जो लाईने लगी हुई है आप भी उस लाइन में लग जाओ।


वो भक्त भी लाईन में लग गया वहाँ बहुत ही भीड़ थी पर एक और लाइन उसके साथ ही थी पर वो एकदम खाली थी।


भक्त को बड़ी हैरानी हुई की यहाँ इतनी भीड़ और यहाँ तो बारी ही नही आ रही और वो लाइन से लोग जल्दी जल्दी दर्शन करने जा रहे है।


उस भक्त से रहा न गया उसने अपने साथ वाले भक्त से पूछा की भैया यहाँ इतनी भीड़ और वो लाइन इतनी खाली क्यों है और वहाँ सब जल्दी जल्दी दर्शन के लिए कैसे जा रहे है वो तो हमारे से काफी बाद में आए है।


उस दूसरे भक्त ने कहा भाई यह वी आई पी लाइन है जिसमे शहर के अमीर लोग, बड़े बड़े मंत्री, उद्योगपति आदि  हैं।


भक्त की सुनते ही आँखे खुली रह गई उसने मन में सोचा भगवान के दर पे क्या अमीर क्या गरीब यहाँ तो सब समान होते है।


कितनी देर भूखे प्यासे रहकर उस भक्त की बारी दरबार में आ ही गई और भगवान को वो दूर से देख रहा था और उनकी छवि को देखकर बहुत आनंदित हो रहा था।


वो देख रहा था की भगवान को तो सब लोग यहाँ छप्पन भोग,, आलीशान महंगी मिठाइयां चढ़ा रहे है और वो अपने थोड़े से अमरुद  लेकर आया था इसलिए सब से छुपा रहा था।


जब दर्शन की बारी आई तो सेवादारो ने उसे ठीक से दर्शन भी नही करने दिए और जल्दी चलो जल्दी चलो कहने लगे। उसकी आँखे भर आई और उसने चुपके से अपने वो अमरुद वहाँ रख दिए और दरबार से बाहर चला गया।


दरबार के बाहर ही लंगर प्रशाद लिखा हुआ था। भक्त को बहुत भूख लगी थी सोचा अब प्रशाद ग्रहण कर लू ।


जेसे ही वो लंगर हाल के गेट पर पहुँचा तो 2 दरबान खड़े थे वहाँ उन्होंने उस भक्त को रोका और कहा पहले वी आई पी पास दिखाओ फिर अंदर जा सकोगे।


भक्त ने कहाँ यह वी आई पी पास क्या होता है मेरे पास तो नही है। उस दरबान ने कहा की यहाँ जो अमीर लोग दान करते है उनको पास मिलता है और लंगर सिर्फ वो ही यहाँ खा सकते हैं।


भक्त की आँखों में इतने आँसू आ गए और वो फूट फूट कर रोने लगा और भगवान से नाराज़ हो गया और अपने घर वापिस जाने लगा।


रास्ते में वो भगवान से मन में बातें करता रहा और उसने कहा प्रभु आप भी अमीरों की तरफ हो गए आप भी बदल गए प्रभु मुझे आप से तो यह आशा न थी और सोचते सोचते सारे रास्ते रोता रहा।


भक्त घर पर पहुँच कर रोता रोता सो गया।


भक्त को भगवान् ने नींद में दर्शन दिए और भक्त से कहा तुम नाराज़ मत होना मेरे प्यारे भक्त


भगवान ने कहा अमीर लोग तो सिर्फ मेरी मूर्ति के दर्शन करते है मेरे नहीं क्यों कि वे मुझे कभी भी नहीं पा सकते उनके अंदर अभिमान, काम, क्रोध जैसी तमाम तामसी प्रवित्तियां होती हैं।अपने साक्षात् दर्शन तो मैं तुम जैसे भक्तों को देता हूँ ...


और मुझे छप्पन भोग से कुछ भी लेंना देंना नही है मै तो भक्त के भाव का ग्राही  हूँ  जिस भक्त के अंतरमन में मेरे लिए विशुद्ध प्रेम होता है मैं सदैव उन्ही का हूं और उनके  सारे दुख दर्द मै हर लेता हूँ और यह देख मै तेरे भाव से चढ़ाए हुए अमरुद खा रहा हूँ अमीरों के पकवान या मिठाईयां सिर्फ मन्दिर के पुजारियों के काम आतीं  हैं ।


भक्त का सारा संदेह दूर हुआ और वो भगवान के साक्षात् दर्शन पाकर गदगद हो गया और उसका गोविंद गोधाम जाना सफल हुआ और भगवान को खुद उसके घर चल कर आना पड़ा।


भगवान भाव ग्राही होते हैं  शब्द ग्राही नहीं होते ,, वे अंतर्मन में छुपे हुए प्रेम के वशीभूत होकर एक पल में भक्त के सभी संकट हर लेते हैं ,, एक छोटा उदाहरण प्रस्तुत है जब अकबर ने मां ज्वाला देवी मंदिर में सोने का छत्र  अर्पित किया तो उसके अंदर बादशाही  का अभिमान देख  उसी क्षण मां ने उस क्षत्र का रंग काला कर दिया,, बिन भाव के भगवान् के समक्ष  चढ़ाए छप्पन भोग भी फीके है !!! 


इस तरह से कोइ भी घटना यदि आपकी जानकारी में हो,, या आपने जीवन में ईश्वरीय शक्ती का अहसास किया हो तो हमको भेजिए,9897145867


जय जय श्री राधे ,, जय श्री राम,,

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