विरोध पर पलटवार सरकारों की अग्नि परीक्षा !



 स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक! गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने रामचरित मानस में उल्लेख नहीं किया  माँ सीता की अग्नि परीक्षा को वे लिख नहीं पाये इस वेदना पूर्ण घटना क्रम को लिखने में उनका साहस जबाब दे गया कितना हृदय विदारक दृश्य होगा जब माँ सीता को अपने आदर्शो  व सत्य निष्ठा का विस्वास दिलाना पड़ा होगा  वे माँ  जानकी जिनकी  राम के प्रति  पूर्ण समर्पण की भावना को राणण का सुख वैभव विचलित ना कर सका हो  बड़ा मार्मिक चित्रण होगा लेकिन  लिखने का साहस  गोस्वामी जी जुटा नहीं पाये यह उनका प्रभु राम के प्रति अगाध प्रेम व निश्छल भक्ति  है लक्षमण का भी धैर्य जबाब दे गया जिन हांथों ने सिर्फ माँ सीता के चरण स्पर्श किये हों  वे हाँथ चिता कैसे तैयार कर सकते हैं लेकिन धन्य है मर्यादा पुरुषोत्तम राम जिन्होने  अपने जीवन काल में भावुकता को स्थान ना देकर  सच्चे आदर्श  की स्थापना की  दूरगामी विचार शक्ति व्दारा वे जान गये थे कि ऐक दिन प्रजा  जरूर ही सीता पर दोषा रोपड़ करेगी  और वही हुआ भी  लेकिन कब  ? जब राम राजधर्म का पालन कर रहे थे  तब अग्नि परीक्षा के वावजूद माँ सीता पर प्रजा ने दोषा रोपड़ किया  परन्तु लेकिन राजधर्म के मर्मग्य राजा राम को  अपने कर्तव्यों से कौन डिगा सकता था उन्होने तत्काल सीता को त्यागने का निर्णय लिया व लक्षमण को आदेशित किया कि  वे सीता को वन में छोड़ आये तो क्या राम के अन्तर्मन की वेदना किसी ने समझी कितना अगाध प्रेम था सीता से  लेकिन सबसे महत्वपूर्ण व प्रिय  वस्तुओं का त्याग करने का नाम है राज धर्म  आज वर्तमान में इससे राजनैतिक पार्टियों के लोगों को शिक्षा लेना चाहिए प्रजा यदि  कोई भी दोषा रोपड़ सरकार पर करे तो बदले में उसे प्रतिशोध की भावना से जेल में नहीं डाल देना चाहिए शर्म आती यह सुनकर कि लॉक डाउन के समय वर्तमान सरकार मीडिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची सरकार का कहना था कि देश की सबसे बड़ी पंचायत सुप्रीम कोर्ट मीडिया के सभी रूपों को निर्देश दे कि लॉक डाउन से जुड़ी खबरें संबधित अधिकारियों से पुष्टि के बाद ही प्रकाशित या प्रसारित करें एडीटर्स गिल्ड ने इसका भी संग्यान लिया सोचने की बात है कि क्या इस तरह के मामले भी सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए क्यों कि फिर यह जबाबी कार्यवाही का हथियार तो सभी को मिल सकता है प्रसाशनिक मशीनरी के तमाम हिस्से दागी है जिनके खिलाफ कोई भी सुप्रीम कोर्ट जा सकता है किसी भी राजनेता को आलोचना सुनने का साहस  व संयम होना चाहिए देश की सरकार को आलोचना से सबक लेना चाहिए सदियों पहले कबीर ने यूं ही नहीं लिख दिया था कि निंदक नियरे राखिये !रही बात मीडिया जगत को प्रतिशोध की भावना से डराने धमकाने या मुकदमों की तो गलत नीतियों का विरोध करने वालों को समाप्त करने से विरोध समाप्त नहीं हो सकता  याद रखना विरोध की ऐक छोटी सी चिंगारी ज्वालामुखी का रूप  ले लेती है सदैव  हमको  हमारे पूर्वजों से सीख लेना चाहिए!

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