खास स्नान दिखावा या भक्ति


 स. संपादक शिवाकांत पाठक! आज गंगा दशहरा है आज नहाना जरूरी होता है  क्यों ? यदि कोई प्रश्न कर दे तो जवाब क्या देंगे आप ? हम जिस परम पिता परमात्मा की संतान हैं उससे कुछ छिप नहीं सकता जैसे आपका एक बेटा प्रति दिन सारे काम छोड़ कर आपके पैर छूता है आपकी आज्ञा का पालन करता है हर पल आपका ध्यान रखता है लेकिन दूसरा बेटा त्योहारों व पर्वो पर आपके पैर छूता है आपकी सेवा करता है तो आप किसे श्रेष्ठ पितृ भक्त मानेंगे ? एकदम सटीक उत्तर होगा जो प्रतिदिन सेवा करता है सेवा भी किसी आराधना से कम नहीं होती भक्ति समर्पण चाहती है दिखावा नहीं क्योंकि रामचरित मानस में भगवान स्वयं कहते हैं निर्मल जल मन सो मोहि पावा , मोहि कपट छल छिद्र ना भावा तो फिर आप ये दिखावा किसके लिए कर रहें हैं आप तो खुद भगवान का रूप हैं जो बात आप को पसंद नहीं है वह भगवान कैसे पसंद करेगा शास्त्रों में पिता को आकाश बताया गया है व यह भी उल्लेख है कि आत्मा जायते पुत्र: पुत्र पिता की आत्मा होता है जिस तरह आप की आत्मा स्वरूप आपके पुत्र हैं वैसे ही ईश्वर की आत्मा आप हैं जो बात आपको अपने पुत्रों द्वारा किए जाने पर अच्छी नहीं लगती वैसे ही ईश्वर को भी आपके द्वारा किए जाने वाले वे कार्य अच्छे नहीं लगते जो आपको पसंद नहीं है हरि व्यापक सर्वत्र समाना प्रेम ते प्रकट  होई मैं जाना !! यह बात कोई मामूली व्यक्ति ने नहीं बल्कि खुद भगवान शिव ने कही है कि वह सभी जगह समान रूप में है ! तो फिर आप सोचिए कि आप का फर्ज क्या बनता है उस परम पिता परमेश्वर के लिए जिसकी मर्जी के बिना आप दूसरी सांस नहीं ले सकते  उसे त्योहारों या पर्वो पर याद करोगे या प्रतिदिन फैंसला आप को करना है मर्जी आपकी है बाकी तो उसके इशारे पर राजा भी एक पल में भिखारी बन जाता है अभिमान ईश्वर की का भोजन है जब सांसे भी उसी की देन हैं तो आपका है क्या ?

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