सच क्या है
सत्य आचरण ही है सर्व श्रेष्ठ धर्म लेकिन सत्य है क्या ? हरिद्वार, स संपादक शिवाकांत पाठक ! अपने देखा होगा कई जगह लिखा होता है सत्य मेव जयते अर्थात सत्य का ही विजय होती है जबकि हम आप सत्य को जानते ही नहीं हैं हमको सत्य का ज्ञान कराया ही नहीं जाता हम तो ए फार एप्पल से ही ज्ञान की शुरुआत कर करते हैं तो क्या जो ज्ञान हम हांशिल करते हैं वह हमको सच की ओर अग्रसर करता है ? नहीं भौतिक जगत के लिए हासिल किया गया ज्ञान सच की ओर नहीं ले जा सकता तो फिर सच क्या है ? पहले तो गुरुकुल परम्परा थी जहां हम ज्ञान पाते थे वह ज्ञान जिस के प्राप्त करने के बाद बड़ी बड़ी शक्तियां हमको प्राप्त होती थीं तब हम जानते थे कि हम कौन हैं ? हमारा उद्देश्य क्या है ? आज हम विकास विकास कह कर विनाश की ओर जा रहे हैं हम अपनी संस्कृति , व सभ्यता खो चुके हैं संस्कार तो हमको छू भी नहीं सकते आज हम प्राचीन महापुरुषों की बात करते हैं तो बच्चो को विश्वास नहीं होता हमने खुद जो पहले देख रखा है उस पर भी विश्वास नहीं होता क्यों कि हम वर्तमान में ढल चुके हैं हम आत्म ज्ञान व आत्म शक्ति को खो चुके हैं एक बात कहूं ? संस्कार विहीन समाज कभी भी विकाश का दावा नहीं कर सकता ! यह एक कड़ुआ सच है जो भी आज तक हमको या विश्व को मिला वह हमारे पूर्वजों से ही मिला हम तो उसे संभाल भी नहीं सके हमको गणित में जीरो का महत्व पूर्वजों ने दिया दिशाओं का ज्ञान पूर्वजों ने दिया आयुर्वेद पूर्वजों ने दिया सर्वे भवन्तु सुखिन सर्वे संतु निरामया पूर्वजों ने दिया लेकिन हमने खो दिया सब कुछ और हम खुदगर्ज बन गए , झूठ, फरेब, मक्कारी, लालच , स्वार्थ, कपट, व बेईमानी तथा भ्रटाचार हमने हासिल करके खुद को महान व्यक्ति समझने लगे लेकिन सच तो इसके विपरीत है हमको सुधार की जरूरत है आगे नहीं पीछे जाने पर ही हम अस्तित्व को बचाने में कामयाब होंगे !
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