मैंने समय बदलते देखा

 


समय सदा बलवान रहा पर मैनें समय बदलते देखा! 

उगता सूरज धीमे धीमे मैने अक्सर ढलते देखा!! 



महलों में रहने वालों को धरती पर कब चलते देखा! 

रथ, घोड़े, गाड़ी पर हरदम अक्सर इन्हे निकलते देखा!! 


अंतिम बार उन्हे मैनें ही इस धरती पर जलते देखा! 

उगता सूरज धीमे धीमे मैने अक्सर ढलते देखा!! 


ऐसी, कूलर, में रहते थे आज उसी से किया किनारा! 

घर में पहुँचे सदा चिकित्सक अस्पताल में मिला सहारा!! 


सबको सदा गिराने वाले गिरकर उन्हे संम्भलते देखा !


उगता सूरज धीमे धीमे मैने अक्सर ढलते देखा!! 


वर्गर पिज्जा खाने वाले आज  हरी सब्जी खाते हैं! 


भूल गए थे जो ईश्वर को आज वही मंदिर जाते हैं!! 


पत्थर दिल जो कहलाते थे उनको आज पिघलते देखा! 

उगता सूरज धीमे धीमे मैने अक्सर ढलते देखा!! 


रचना = स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक वी ऐस इंडिया न्यूज लाइव चेनल  दैनिक /साप्ताहिक विचार सूचक समाचार पत्र सूचना ऐवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार व्दारा मान्यता प्राप्त परिवार  सम्पर्क 9897145867

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