पत्रकारों को ऐकजुट होना चाहिए वर्ना अस्तित्व खतरे में! स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक!
मनुष्य के साथ शारीरिक हिंसा सबसे जघन्यतम कृत्य माना गया है। यदि कोई पत्रकार सच का खुलासा करता है तो उसे माफिया मार डालते हैं। वह लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए ऐसा करता है। ऐसे में हमारी पुलिस व्यवस्था, न्याय पालिका और सरकार को सवालों के घेरे से बाहर नहीं रखा जा सकता है। व हमारे पत्रकार साथी दो चार जगह ग्यापन सौंप कर ठंडे पड़ जाते हैं सच तो कड़ुआ होता ही है और सच यही है कि हम ऐक दूसरे की टांग खींचते है हमको अपने आप को बड़ा बताने व दूसरे को छोटा बताने की आदत बन चुकी है अफसर साही इस बात का फायदा उठा कर तमाम माफियाओं को इसारा कर देता किसके लिए? जो बिक चुके हैं वे उनके खास होते हैं सच तो यही है कि वे उनके पास होते हैं व बेचारा सच लिखने वाला पत्रकार गोलियों का शिकार होता है होता रहा है होता रहेगा यह ध्रुव सत्य है जिसे नकारा नहीं जा सकता हाँ हम इस सच को स्वीकार करें या नहीं यह और बात है !
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