_भाव की पहुंच बुद्धि से गहरी होती है :_ *🌑जो भरा नहीं है भावों से !* *बहती जिसमें रसधार नहीं* स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक! हरिव्दार उत्तराखंड! _क्या भावुक होना कुछ बुरा है? बिल्कुल नहीं। जीवन में जो भी श्रेष्ठ है वह भाव से आता है। बुद्धि से किसी श्रेष्ठता का कोई जन्म न कभी हुआ और न कभी हो सकता है! भगवान को भी भाव ग्राही कहा गया है अर्थात वे भाव को ही गृहण करते हैं लेकिन मनुष्य भाव को नहीं जानता शब्दों को जानता है किसी ने मीठे बोल बोल दिये वह खुश हो जाता है लेकिन वह मीठे बोल बोलने वाले के अन्दर छिपी भावना को नहीं समझ सकता तभी वह दुखी रहता है मीठे बोल बोलने वाले के साथ रहता है लेकिन भावना प्रधान व्यक्ति को भावुक कहते हैं भावुक व्यक्ति बहुत कम होते हैं वास्तविक (सच्चे, बिकाऊ नहीं) लेखक या कवि भावुक होते हैं भावना ईश्वर की दी हुई अद्भुत संम्पदा है ! अगर क्यूरी से कोई पूछे कि कैसे तुमने यह रेडियम खोज निकाला? तो वह कहेगी, मुझे कुछ पता नहीं, ऐसा हुआ है; हो गया है; मेरे वश की बात नहीं है। क्यो कि वह भावुक थी भावनात्मक शक्ति से कुछ भी हांसिल किया जा सकता है! _अगर बड़े वैज्ञानिक से जाकर पूछें तो वह भी कहेगा, हमारे वश के बाहर हुआ है कुछ; हमारी खोज से नहीं हुआ, हमसे कहीं ऊपर से कुछ हुआ है; हम सिर्फ माध्यम थे, इंस्ट्रमेंट थे। बड़ी धर्म की भाषा है।_ भाव बहुत गहरे में है, बुद्धि बहुत ऊपर है। बुद्धि बहुत कामचलाऊ है। बुद्धि वैसे ही है, जैसे कि गवर्नर की गाड़ी निकलती है और आगे एक पायलट निकलता है। _उस पायलट को गवर्नर मत समझ लेना। बुद्धि पायलट से ज्यादा नहीं है। वह रास्ता साफ करती है, लोगों को हटाती है, हिसाब रखती है कि रास्ते पर कोई टक्कर न हो जाए हम कैसे जियें ताकि हमको नुकसान ना हो बुध्दि लाभ हानि समझती है छोटा , बड़ा , गरीब, अमीर, सब कुछ बुध्दि से जाना जाता है लेकिन भाव यानि भावना इसके विपरीत है कुछ भी नहीं जानती सिर्फ प्रेम व किसी के कष्ट में बेहद दुख महशूस करना भावना पर निर्भर करता है! जीवन में जो भी सुंदर है, श्रेष्ठ है, वह भाव से जन्मता और पैदा होता है। लेकिन~ _कुछ लोग पायलट को नमस्कार कर रहे हैं। वे कहते हैं, हम इंटेलेक्चुअल हैं, हम बुद्धिवादी हैं; हम पायलट को ही गवर्नर मानते हैं। मानते रहें, पायलट भी खड़ा होकर हंस था!


🌑जो भरा नहीं है भावों से !* *बहती जिसमें रसधार नहीं* स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक! हरिव्दार उत्तराखंड! 

                


      _क्या भावुक होना कुछ बुरा है? बिल्कुल नहीं। जीवन में जो भी श्रेष्ठ है वह भाव से आता है। बुद्धि से किसी श्रेष्ठता का कोई जन्म न कभी हुआ और न कभी हो सकता है! भगवान को भी भाव ग्राही कहा गया है  अर्थात वे भाव को ही  गृहण करते हैं  लेकिन मनुष्य भाव को नहीं जानता शब्दों को  जानता है किसी ने मीठे बोल बोल दिये  वह खुश हो जाता है लेकिन वह  मीठे बोल बोलने वाले के अन्दर छिपी भावना को नहीं समझ सकता तभी  वह दुखी रहता है मीठे बोल बोलने वाले  के साथ रहता है  लेकिन भावना प्रधान व्यक्ति को भावुक कहते हैं भावुक व्यक्ति  बहुत कम होते हैं वास्तविक (सच्चे, बिकाऊ नहीं) लेखक या कवि भावुक होते हैं  भावना ईश्वर की दी हुई  अद्भुत संम्पदा  है  !

         

         अगर क्यूरी से कोई पूछे कि कैसे तुमने यह रेडियम खोज निकाला? तो वह कहेगी, मुझे कुछ पता नहीं, ऐसा हुआ है; हो गया है; मेरे वश की बात नहीं है। क्यो कि  वह भावुक थी  भावनात्मक  शक्ति से कुछ भी हांसिल किया जा सकता है! 

        _अगर बड़े वैज्ञानिक से जाकर पूछें तो वह भी कहेगा, हमारे वश के बाहर हुआ है कुछ; हमारी खोज से नहीं हुआ, हमसे कहीं ऊपर से कुछ हुआ है; हम सिर्फ माध्यम थे, इंस्ट्रमेंट थे। बड़ी धर्म की भाषा है।_


भाव बहुत गहरे में है, बुद्धि बहुत ऊपर है। बुद्धि बहुत कामचलाऊ है। बुद्धि वैसे ही है, जैसे कि गवर्नर की गाड़ी निकलती है और आगे एक पायलट निकलता है।

     _उस पायलट को गवर्नर मत समझ लेना। बुद्धि पायलट से ज्यादा नहीं है। वह रास्ता साफ करती है, लोगों को हटाती है, हिसाब रखती है कि रास्ते पर कोई टक्कर न हो जाए  हम कैसे जियें ताकि हमको नुकसान ना हो बुध्दि लाभ हानि समझती है छोटा ,  बड़ा  , गरीब, अमीर,  सब कुछ बुध्दि से जाना जाता है लेकिन  भाव  यानि भावना इसके विपरीत है कुछ भी नहीं जानती सिर्फ  प्रेम  व किसी के कष्ट में  बेहद दुख महशूस करना भावना  पर निर्भर करता है! 

     जीवन में जो भी सुंदर है, श्रेष्ठ है, वह भाव से जन्मता और पैदा होता है।


लेकिन~

_कुछ लोग पायलट को नमस्कार कर रहे हैं। वे कहते हैं, हम इंटेलेक्चुअल हैं, हम बुद्धिवादी हैं; हम पायलट को ही गवर्नर मानते हैं। मानते रहें, पायलट भी खड़ा होकर हंस था!

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