स्वर्ण प्रासन कैसे करें व क्या होता जानना जरूरी है!डॉ विपिन चंद्रा! हरिव्दार! स. सम्पादक शिवाकान्त पाठक!




स्वर्णप्राशन (आयुर्वेदिक इम्यूनाइजेशन )।स्वर्ण प्राशन_  स्वर्ण प्राशन हमारे 16 संस्कारों में से एक है। स्वर्ण प्राशन दो शब्दों से मिलकर बना है_ स्वर्ण और प्रासन्न। स्वर्ण अर्थात सोना। प्राशन अर्थात चटाना । इस प्रकार सोने को चटाना स्वर्ण प्राशन कहलाता है। जिस

प्रकार एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति में बीमारी से बचाव के लिए टीकाकरण का प्रयोग किया जाता है उसी प्रकार आयुर्वेद में स्वर्ण प्राशन का प्रयोग किया जाता है ।इस प्रकार स्वर्ण प्राशन आयुर्वेदिक इम्यूनाइजेशन है। स्वर्ण प्राशन के घटक___, स्वर्ण भस्म,गोघृत,शहद ,ब्राह्मी शंखपुष्पी आदि मेधय द्रव्य को मिलाकर स्वर्ण प्राशन बनाया जाता है। स्वर्ण प्राशन के लाभ___१- इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता( इम्युनिटी )बढ़ती है।२- बुद्धि और स्मरण शक्ति तेज होती है । ३-बच्चों में बार -बार सर्दी, नजला, बुखार ,खांसी ,टॉन्सिल आदि की की समस्या दूर हो जाती है ।४-भूख और पाचन क्रिया को बढ़ाता है।५- बच्चों में शारीरिक व मानसिक कमजोरी को दूर करता है।६- सुनने, देखने एवं बोलने संबंधित क्रियाओं का विकास करता है। स्वर्ण प्राशन देने की विधि____ स्वर्ण प्राशन मुख्यतः पुष्य नक्षत्र में देना चाहिए। यह जन्म से लेकर 16 साल तक के बच्चों को कराया जाता है। मात्रा___ ० से 1 वर्ष एक बूंद।  1 से 3 वर्ष दो बूंद। 3 से 16 वर्ष चार बूंद। इस प्रकार सुवर्णप्राशन की उपयोगिता को देखने पर पता चलता है कि स्वर्ण प्राशन को एक अभियान के तहत चलाया जाना चाहिए जिस प्रकार बच्चे के जन्म होने के बाद ही उनमें टीकाकरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है या जिस प्रकार पोलियो ड्रॉप पिलाने का कार्यक्रम किया जाता है ठीक उसी प्रकार स्वर्ण प्राशन को भी किया जाना चाहिए।

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