प्रेस दिवस पर देखें प्रदीप चौधरी ने क्या कहा
पत्रकारिता ऐक निस्वार्थ राष्ट्रप्रेम लेकिन उपेक्षित क्यों! प्रदीप चौधरी मण्डल ब्यूरोचीफ गढ़वाल मंडल! 16 नवम्बर प्रेस दिवस पर वी एस इंडिया न्यूज लाइव चेनल व दैनिक/साप्ताहिक विचारसूचक समाचार पत्र सूचना ऐवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार व्दारा मान्यता प्राप्त परिवार श्री प्रदीप चौधरी ने ऐक भेंट वार्ता के दौरान कहा कि भारतीय संविधान में पत्रकारिता चौथा स्तंभ है व संविधान का चौथा पाया होने के बावजूद अस्तित्व हीन है आज देखने को मिलता है कि तमाम अबैध कार्यों में लिप्त लोगों की पहुंत सीधे तौर पर आला अधिकारियों के साथ ही पत्रकारों से भी है जो पत्रकार बिकाऊ नहीं हैं ने बेहद दयनीय स्थिति में हैं वे अपने बच्चों को सही तरीके से ना तो शिक्षित कर सकते हैं ना ही उनका भरण पोषण तो हमारे संविधान में जब जनसेवी नेताओं को पेंशन व सभी सुविधाएं प्रदान की तब चौथा स्तंभ आखिर वंचित क्यों किया ऐक बच्चा भूख से तड़फते हुये यदि होटल से रोटी चोरी करता है तो उसे पुलिस गिरफ्तार कर लेती है परन्तु जब ऐक प्रधान या विधायक तथा मंत्री करोड़ो के घोटाले करते हैं वह भी विकास के नाम पर तब हमारा संविधान मूक दर्शक बनने के लिए मजबूर क्यों होता है व इन सवालों का जबाब कौन देगा और कब?
भारत के संदर्भ पत्रकारिता कोई एक-आध दिन की बात नहीं है, बल्कि इसका एक दीर्घकालिक इतिहास रहा है। प्रेस के अविष्कार को पुर्नजागरण एवं नवजागरण के लिए एक सशक्त हथियार के रूप में प्रयुक्त किया गया था। भारत में प्रेस ने आजादी की लड़ाई में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर गुलामी के दिन दूर करने का भरसक प्रयत्न किया। कई पत्रकार, लेखक, कवि एवं रचनाधर्मियों ने कलम और कागज के माध्यम से आजादी की आग को घी-तेल देने का काम किया।
प्रेस की आजादी को लेकर आज कई सवाल उठ रहे हैं। पत्रकार और पत्रकारिता के बारे में आज आमजन की राय क्या है? क्या भारत में पत्रकारिता एक नया मोड़ ले रही है? क्या सरकार प्रेस की आजादी पर पहरा लगाने का प्रयास कर रही है? क्या बेखौफ होकर सच की आवाज को उठाना लोकतंत्र में 'आ बैल मुझे मार' अर्थात् खुद की मौत को सामने से आमंत्रित करना है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो आज हर किसी के जेहन में उठ रहे हैं।
बेशक, मीडिया सूचना स्त्रोत के रूप में खबरें पहुंचाने का काम करता है, तो हमारा मनोरंजन भी करता है। मीडिया जहां संचार का साधन है, वही परिवर्तन का वाहक भी है। लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में निरंतर हो रही पत्रकारों की हत्या, मीडिया चैनलों के प्रसारण पर लगाई जा रही बंदिशे व कलमकारों के मुंह पर आए दिन स्याही पोतने जैसी घटनाओं ने प्रेस की आजादी को संकट के घेरे में ला दिया है।
बेंगलुरु में कन्नड़ भाषा की साप्ताहिक संपादक व दक्षिणपंथी आलोचक गौरी लंकेश की गोली मारकर की गई निर्मम व निंदनीय हत्या इसका उदाहरण है। यही ही नहीं इससे पहले नरेंद्र दाभोलकर, डॉ. एम.एम. कलबुर्गी और डॉ. पंसारे की हत्या हो चुकी है। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट यानी आई.एफ.जे. के सर्व के अनुसार वर्ष 2016 में पूरी दुनिया में 122 पत्रकार और मीडियाकर्मी मारे गए। जिसमें भारत में भी छह पत्रकारों की हत्या हुई है। आज ऐसा कोई सच्चा पत्रकार नहीं होगा जिसे रोज-ब-रोज मारने व डराने की धमकी नहीं मिलती होगी।
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