थाने में सुरक्षा की दृष्टि से कपड़े उतरवाने का नियम कब से ? (हास्य लेख)
स. संपादक शिवाकांत पाठक!
अभी हाल ही में 19 अप्रैल को उत्तर प्रदेश के महाराज गंज थाना कानपुर में पत्रकार चंदन जायसवाल को मारपीट के बाद अर्ध नग्न नहीं वल्कि पूर्ण नग्न करने का मामला आया साथ ही सीधी के जिस थाने में पत्रकार कनिष्क तिवारी और रंगकर्मियों के कपड़े उतरवाकर बैठाया गया, उसके प्रभारी मनोज सोनी की सफाई आई है।
प्रभारी मनोज सोनी ने कहा है कि हमने उनको पूरी तरह से नंगा नहीं किया, सभी ने अंडरवियर पहन रखी है। उनके कपड़े सुरक्षा की दृष्टि से उतरवाए गए क्योंकि कई बार कैदी अपने कपड़ों से फांसी लगा लेते हैं। इस वजह से हमने उनके कपड़े उतरवा लिए थे। इस मामले में सीधी पुलिस के इस तर्क को कई लोगों ने हास्यास्पद कहा है। सोशल मीडिया पर लोगों ने लिखा है कि इतनी अमानवीयता के बाद भी पुलिस कुछ भी बोल रही है, उसे अब तो संवेदनशीलता दिखाने की जरूरत है। अब आप खुद सोचिए कि हवालात में केवल पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं भी बंद होती हैं तो क्या उन्हें भी सुरक्षा की दृष्टि से कपड़े उतारना पड़ते हैं ? हो सकता है कि कोई कानून रातों रात बन गया हो क्यों कि रातों रात जब नोट बंदी का ऐलान हुआ तो फिर सुरक्षा की दृष्टि से कपड़े उतारवाने का भी ऐलान हो सकता है क्यों कि अंधे पिसै कुत्ते खाएं वाली कहावत चरितार्थ तो होना ही चाहिए ये हमारा भारत ऐसे ही महान नहीं है भाई यहां बड़े महान लोग रहते हैं अब तो डर सा लगने लगा है क्या पता हम डाक्टर के पास जाएं और वह स्वास्थ के दृष्टि कोण से कहे कि कपड़े उतारो , कपड़े उतरवाने का ये चलन हो या रिवाज ,ये बड़ा अजीब सा महसूस होता है क्यों कि यहां कोई भी घटना बार बार हो तो वह रिवाज में तब्दील हो जाती है अभी ये थाने से शुरू हुआ है कल तक जेल में भी लागू हो जाएगा , सच तो कहा सीधी थाना प्रभारी मनोज सैनी ने कि सुरक्षा की दृष्टि से कपड़े उतारवाए थे , सुरक्षा की जिम्मेदारी बड़ी कर्तव्यनिष्ठा के साथ निभाने वाले प्रभारी जी को राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया जाना चाहिए था लेकिन यही तो अंधेर नगरी है उल्टे उन्हें लाईन हाजिर कर दिया , जबकि यदि हमारे देश की जनता को यह बात मालूम पड़ जाए कि हम कपड़े उतारने के बाद पूर्ण सुरक्षित रह सकते है तो नगों का देश कहलाने में देर नहीं लगेगी क्यों कि सुरक्षा सर्वोपरि है भाई जान सबको प्यारी है कपड़े नहीं !
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