आत्मा का विकास करना ही जीवन की सफलता है !

 



संपादक शिवाकांत पाठक !




  अपने पढ़ा व सुना होगा कि आत्मा परमात्मा का अंश होती है यानी कि परमात्मा का सूक्ष्म रूप लेकिन हम परमात्मा से विलग हो गए दुनियां में आगए परमात्मा ऊपर है और हम नीचे , तो अब हमको ऊपर उठना चाहिए , लोग कहते हैं महान बनो महान का मतलब सबसे ऊंचा !



और ऊंचाई तक पहुंचने के लिए हमको हल्का होना चाहिए ज्यादा वजनदार  वस्तु ऊपर कैसे जाएगी ? तो हम जिन गलत चीजों को साथ लेकर घूम रहे हैं उन्हें छोड़ देना चाहिए , लालच, काम, क्रोध, झूठ, मोह , अज्ञान, कामना इस सभी को छोड़ दो आप खुदको हल्का महसूस करेंगे ! गोस्वामी तुलसीदास जी महराज राम चरित मानस में लिखते हैं कि भगवान राम चन्द्र जी स्वयं कहते हैं"  "निर्मल जल मन सो मोहि पावा" निर्मल का अर्थ है गंदगी रहित  एक दम स्वक्ष साफ पानी की तरह जिनका मन हो वे ईश्वर के प्रिय होते हैं और अप्रिय कौन हैं , साथ ही कहते हैं मोहि कपट छल छिद्र न भावा !! कपट, छल यानी धोखा झूठ आदि से दूषित मन पसंद नहीं है परमात्मा को ! 


  जगत परमात्मा का पतन है और जगत में विकास का एक ही उपाय है और वह यह कि यह पतन खो जाय और हम वापस मूलस्रोत को हो जाएं उपलब्ध। जैसे एक पौधा ऊपर की ओर बढ़ता है और वृक्ष बनता है, वैसे ही हम संसार में ऊपर की ओर नहीं बढ़ रहे हैं। हम संसार में जितने बढ़ते हैं, उतने नीचे की ओर ही बढ़ते हैं। सारी व्यवस्था और प्रक्रिया उल्टी है। यही कारण है कि भारतवर्ष का समग्र चिन्तन 'त्यागवादी' हो गया है।_

      त्याग का अर्थ है--संसार जिसको विकास कहता है, उसे हम छोड़ दें। संसार जिसे उपलब्धि कहता है, उसको हम तुच्छ समझ लें। संसार जिसको भोग कहता है, उसे हम त्याग समझें।


      हमारे एक मित्र धन-दौलत कमाते जा रहे है, उसे भौतिकवादी 'विकासशील' कहेंगे। अभोतिकवादी लोगों ने उसे विकासशील नहीं कहा। जिसने बुद्ध-महावीर की तरह धन-दौलत का त्याग कर दिया, उसे विकासशील कहा गया।

      भौतिकवादी के लिए संग्रह करना विकास है, एकत्र करना विकास है। आपके पास कितना धन-दौलत और ऐश्वर्य है, उसे देखकर संसारी व्यक्ति आपका मूल्यांकन करता है और आपकी ऊंचाई मापता है, लेकिन जो आध्यात्मिक व्यक्ति है, वह देखेगा कि आपके पास अपना कितना बचा है ? 



 जिस दिन आप 'अकेले' बच जाते हैं और आपके पास अपना कुछ नहीं होता खोने के लिए, समझिए--आप 'पूर्ण विकसित' हो गए। आपकी आत्मा पूर्ण विकास को हो गयी उपलब्ध।

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