हरिद्वार के महान संत से वी एस इंडिया न्यूज़ की टीम से भेंट के दौरान कहा वर्तमान का यथार्थ! हरिद्वार!

 


संपादक शिवाकांत पाठक !



वी एस इंडिया न्यूज़ टीम ने की भेंट! हरिद्वार के महान संत रविंद्र पुरी जी महाराज से रविवार शाम हुई , भेंट के दौरान महाराज रविंद्र पुरी जी ने कहा कि मैं इस चैनल के माध्यम से भारत वासियों एवं उत्तराखंड वासियों को हार्दिक शुभकामनाएं प्रदान करता हूं साथी वर्तमान सरकार द्वारा धार्मिकता एवं आस्था के प्रति ध्यान आकृष्ट करने हेतु आभार व्यक्त करता हूं उन्होंने कहा कि हरिद्वार भगवान विष्णु का ह्रदय कहलाने वाली धर्म नगरी के नाम से विख्यात  है यहां पर दुनिया के कोने-कोने से श्रद्धालु आकर शांति और पुण्य प्राप्त करते हैं एवं धर्म नगरी में तमाम विद्वान संत भी निवास करते हैं मां गंगा का "भी अवतरण इसी स्थान पर होना एक शुभ संकेत से परिपूर्ण ऐतिहासिक एवम धार्मिक प्रमाण है भगवान शिव की धर्मपत्नी माता सती ने भी अपने पिता राजा दक्ष के यहां यज्ञ के दौरान  जगत पिता भगवान शंकर के अपमान को देख आत्मआहुति  देते हुए अपनी योगाग्नि से शरीर को भस्म कर दिया था, वह स्थान भी हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में स्थित है ,, वर्तमान समय पर प्रकाश डालते हुए स्वामी जी  महराज ने कहा कि आज कलियुग के प्रभाव के कारण सिर्फ आम जनता ही नहीं बल्कि संत महात्मा भी अपना अस्तित्व खोते जा रहे क्यों कि एक संत के लक्षण हमारी रामचरित मानस में गो स्वामी तुलसी दास जी महराज ने वर्णन करते हुए लिखा है कि !



संतन्ह के लच्छन सुनु भ्राता। अगनित श्रुति पुरान बिख्याता॥


संत असंतन्हि कै असि करनी। जिमि कुठार चंदन आचरनी॥ 


काटइ परसु मलय सुनु भाई। निज गुन देइ सुगंध बसाई॥ 


ताते सुर सीसन्ह चढ़त जग बल्लभ श्रीखंड। अनल दाहि पीटत घनहिं परसु बदन यह दंड॥ 


बिषय अलंपट सील गुनाकर। पर दुख दुख सुख सुख देखे पर॥ 


सम अभूतरिपु बिमद बिरागी। लोभामरष हरष भय त्यागी॥ 


कोमलचित दीनन्ह पर दाया। मन बच क्रम मम भगति अमाया॥ 


सबहि मानप्रद आपु अमानी। भरत प्रान सम मम ते प्रानी॥ 


बिगत काम मम नाम परायन। सांति बिरति बिनती मुदितायन॥ 


सीतलता सरलता मयत्री। द्विज पद प्रीति धर्म जनयत्री॥ 


ए सब लच्छन बसहिं जासु उर। जानेहु तात संत संतत फुर॥


हे भाई! संतों के लक्षण (गुण) असंख्य हैं, जो वेद और पुराणों में प्रसिद्ध है। संत और असंतों की करनी ऐसी है, जैसे कुल्हाड़ी और चंदन का आचरण होता है। हे भाई ! सुनो, कुल्हाड़ी चन्दन को काटती है [क्योंकि उसका स्वभाव या काम ही वृक्षों को काटना है]; किंतु चन्दन [अपने स्वभाववश] अपना गुण देकर उसे (काटने वाली कुल्हाड़ी को) सुगंध से भर कर देता है। इसी गुण के कारण चन्दन देवताओं के सिरों पर चढ़ता है  क्यों कि कर्म का फल मीठा होता है  औरअच्छे कर्म करने वाला जगत का प्रिय होता है और कुल्हाड़ी के मुख को यह दंड मिलता है कि उसको आग में जलाकर फिर घन से पीटते हैं। यह बात माया मोह के बंधन से ग्रसित लोगों को समझ में नहीं आ सकती,,


संत विषयों में लम्पट (लिप्त) नहीं होते, शील और सद्गुणों की खान होते हैं। उन्हें पराया दुःख देखकर दुःख और सुख देखकर सुख होता। वे [सब में, सर्वत्र, सब समय] समता रखते हैं, उनके मन में किसी के प्रति शत्रुता नहीं होती, वे मद से रहित और वैराग्यवान होते हैं तथा लोभ, क्रोध, हर्ष और भय का त्याग किये हुए रहते हैं। उनका चित्त बड़ा कोमल होता है। वे दीनों पर दया करते हैं तथा मन, वचन और कर्म से मेरी निष्कपट (विशुद्ध) भक्ति करते हैं। सबको सम्मान देते हैं, पर स्वयं मान रहित होते हैं। स्वामी जी महराज ने कहा कि ईश्वर का स्मरण करना एवम सदैव निस्वार्थ भाव से सभी जीवों की सेवा करना ही वास्तविक सत्कर्म है,, अंत में उन्होने वी एस इन्डिया न्यूज चैनल दैनिक विचार सूचक समाचार पत्र सूचना एवम प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त परिवार का आभार व्यक्त किया अंत में हरि ॐ हरि ॐ का उद्बोधन कर स्वामी जी ने वाणी को विराम दिया!




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