एक बार जरूर पढ़िए,,जन्म से लेकर मृत्यु तक विषम परिस्थितियों में भी मुस्कराते रहे कृष्ण से प्रेरणा लें ! स.संपादक शिवाकांत पाठक!

 



( श्री कृष्ण का अवतार रात्रि 12 बजे हुआ था तो आप अपने घरों पर जागते हैं लेकिन क्यों भूल जाते हैं कि उनका अवतरण जेल में हुआ था,, जहां पापी कंस का शासन था,, और आपका घर,,,? )



कभी कभी आम जन मानस कुछ गलतियां कर देता है जिन्हे हम नजर अंदाज करते हुए धार्मिकता पर तमाम सावल छोड़ देते हैं,, जैसे कि श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव,, जबकि हमारे शास्त्र, पुराण,, श्रीमद भागवत यह स्पष्ट रूप से कहते हैं कि श्री कृष्ण  एवम मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार हुआ है, अपनें कर्मों के प्रारब्ध वश मनुष्य बार बार जन्म लेता है यह विधि का विधान है,, लेकिन ईश्वर का सदैव अवतरण होता है अपनी तमाम शक्तियों और कलाओं के साथ ईश्वर तब अवतार लेता है जब जब अधर्म अपनी चरम सीमा को लांघता है,, कुछ इसी तरह से भगवान श्री राम और श्री कृष्ण का अवतार हुआ,, जब भी कंस या रावण जैसे अभिमानी शासकों द्वारा आम जनता के साथ अत्याचार हुआ है तभी ईश्वर को अवतार लेना पड़ा,, हम आज अपने घरों में श्री कृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम से मनाएं यह कहीं तक ठीक है,, क्यों कि अवतार को हम मानवीय सोच के अनुसार जन्म मान लेते हैं,, लेकिन हम अपनें घरों में उनको जन्म दें थोड़ा नहीं बहुत कुछ सोचने की अवश्यकता है,, यह बहुत बड़ी भूल है,, क्यों कि हम एक बूंद हैं,, हम सागर को जन्म देने की शक्ती नहीं रखते,,

किसी ने सही लिखा है कि "" वह नहीं पूजन कि जो भगवान को भी भक्त कर दे,, भक्त को भगवान कर दे हम उसे पूजन कहेंगे,,


जो पुरातन को नया कर दे उसे नूतन कहेंगे,,,


सोचिए, भगवान श्रीकृष्ण का अवतार जेल में हुआ था,, वहां जहां कि रावण का शासन चलता था,, आप अपने घरों में उनके अवतार को विधि विधान से संपन्न कर क्या स्पष्ट करना चाहते हैं,, आपका घर एक घर है जेल नहीं,, और वर्तमान समय पर आपके घरों का शासक कंस नहीं है,, फिर क्यों ऐसा कर रहे हैं आप,, आप क्या साबित करना चाहते हैं,, सर्व शक्तिमान सोलह कलाओं से युक्त भगवान श्रीकृष्ण को आप अपनी मर्जी से अपने घर पर जन्म देने की शक्ती रखते हैं यही न,,? 


आप स्वयं ईश्वर बनने की चेष्टा ना करें ,, आप अपनी भक्ति भावना से उस परम शक्ती शाली श्री कृष्ण का अवतरण दिवस मनाएं,, वह भी धूम धाम से,, यही मेरा विनम्र निवेदन है,, बाकी आप खुद बुद्धिमान हैं,,,


कृष्ण उज्जैन के आश्रम में गुरु सांदीपन से शिक्षा ले रहे थे। शिक्षा पूरी हुई गुरु दक्षिणा की बारी आई, तो सांदीपनि ने कहा कि उन्हें उनका वो मरा हुआ बेटा चाहिए जिसे एक राक्षस उठाकर ले गया था। प्रभास क्षेत्र से वो राक्षस आया था, जहां अभी सोमनाथ ज्योतिर्लिंग है। कृष्ण गुरु का आदेश मान प्रभास क्षेत्र पहुंचे। समुद्र में उतर कर उस राक्षस को मारा भी। सांदीपनि का पुत्र तब यमलोक पहुंच चुका था। कृष्ण उसे वापस ले आए। प्रभास क्षेत्र में समुद्र के बीच उन्होंने एक टापू को देख लिया था, जिसे लेकर उन्होंने तभी योजना बना ली थी कि भविष्य में यहां सबसे सुरक्षित शहर बसाया जा सकता है। जब जरासंघ ने अपने दामाद कंस की हत्या का बदला लेने के लिए मथुरा पर आक्रमण किया तो कृष्ण ने मथुरावासियों को द्वारिका चलने कहा। कब, किस अवसर पर हमारे सामने कौन सी चीज आ रही है, उसे समझना बहुत जरूरी है। लगभग हर इंसान के जीवन में ऐसे मौके आते हैं, जब वो किसी चीज में अपना भविष्य सोच सकता है लेकिन हम अक्सर वो चूक जाते हैं। कृष्ण कहते हैं अवसर आपकी आंखों के सामने से गुजरेंगे, उनको समझना और लपकना आपके अपने हाथ में है।


बदल सकती है छवि

नरकासुर नाम का एक राक्षस था। कई राजकुमारियों, रानियों और महिलाओं को उसने कैद किया था। सब नरकासुर के अत्याचार से पीड़ित थीं। कृष्ण तक बात पहुंची। नारी सुरक्षा के लिए राक्षस को मार दिया। सबको आजाद कराया। इसके पहले तक कृष्ण को सिर्फ माखन चोर और गोपियों से छेड़ करने वाला समझा जाता रहा। वो महिलाएं आजाद होने के बाद भी फिर लौट आईं। कारण था, उनको अशुद्ध समझकर परिवारों ने अपनाने से इंकार कर दिया। कोई स्वामी नहीं था उनका। कृष्ण ने खुद ही एक कदम बढ़ाया। सभी बेसहारा नारियों को अपना नाम दिया। सबसे विवाह किया, समाज में उनकी खोई प्रतिष्ठा लौटाई। ये एक अवसर था। नारी समाज को सम्मान देने का। कृष्ण ने तत्काल इस मौके पर सही निर्णय लिया। ये ही वो सोलह हज़ार एक सौ आठ पटरानियां जिनसे कृष्ण ने विवाह किया। 16108 महिलाएं जिनके सम्मान के लिए कृष्ण ने उन्हें अपना नाम दिया। जिस कृष्ण की छवि दूसरी थी, उन्हें नारी समाज का सबसे बड़ा हितैषी इस एक मौके ने बना दिया। समाज हित के लिए हम सब के सामने कई मौके आते हैं जो हमारी छवि को बदल सकते हैं, लेकिन हम अक्सर सही फैसलों के अभाव में वो खो देते हैं।


श्रीकृष्ण का जीवन, सिखाता है विपरीत परिस्थितियों से निपटने का हुनर


समय का ध्यान रखें…

किस समय क्या काम करना बेहतर है। ये आपको पता होना चाहिए। कुरुक्षेत्र का एक प्रसंग है। अभिमन्यु की हत्या के बाद अर्जुन ने जयद्रथ को एक ही दिन में मारने की सौगंध ली। पूरी कौरव सेना उसकी सुरक्षा में थी। दिन ढलने तक जयद्रथ का मारा जाना जरूरी था, वरना सौगंध के मुताबिक अर्जुन को आत्मदाह करना पड़ता। पांडव जयद्रथ को मारने और कौरव पूरी तरह उसे बचाने में लगे थे। लेकिन, कृष्ण के अलावा किसी को ये ध्यान नहीं था कि उस दिन सूर्यग्रहण होने वाला है। दोपहर में सूर्य छिप गया। अर्जुन आत्मदाह की तैयारी में लगे लेकिन कृष्ण जानते थे कि दिन ढला नहीं है, सिर्फ सूर्य छिपा है। जयद्रथ खुशी के मारे पागल हुआ और अर्जुन के सामने आ गया। तभी ग्रहण भी समाप्त हुआ। जयद्रथ मारा गया। सूर्यग्रहण ही एक मौका था, जब जयद्रथ को मारा जा सकता था। इसी को ध्यान में रखते हुए कृष्ण अर्जुन के रथ को जैसे-तैसे जयद्रथ के इर्दगिर्द रखे रहे। जब भी कोई संकट आए, समय और अवसर खोजें। हम अक्सर उल्टा करते हैं। घबराते हैं, दौड़भाग करते हैं, गलत समय पर कोशिशें करते हैं। जब समस्या आए, शांति से बैठकर उस अवसर को चिन्हित करें, जब एक ही प्रयास में उससे बाहर हो सकते हों। बिना योजना की कोशिशें हमें तोड़ देती हैं जिससे समय आने पर हम पूरी ताकत से कोशिश नहीं कर पाते।


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