गिरगिट की तरह रंग बदलता है आदमी,,,,,
गिरगिट की तरह रंग बदलता है आदमी।
ना जानें कैसी राह पे चलता है आदमी।।
लालच में खुद ही खो रहा हौ आज वह ईमान।
एक दूसरे को शौक से छलता है आदमी।।
मां बाप भाइयों का कोई खौफ ना रहा।
अब नफरतों में प्यार बिन पलता है आदमी।।
सबके दिलों मे जल रही है आग आज काल।
दिखता नहीं धुआं मगर जलता है आदमी।।
रिश्तों का गला घोंट कर जीवन की दौड़ में।
इंशानियत को छोड़ निकलता है आदमी।।
बिखरे हुए मकान हैं जलती है जिंदगी।
इंसानियत पर आग उगलता है आदमी।।
इतना लहू बहा है कि थी,धरती लहू लुहान।
पर खून चूसने को मचलता है आदमी।।
स्वरचित मौलिक रचना
स.संपादक शिवाकांत पाठक
वी एस इंडिया न्यूज चैनल दैनिक विचार सूचक समाचार पत्र सूचना एवम प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त परिवार हरिद्वार उत्तराखंड 🙏
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