सभी का सम्मान करते हैं फिर भी विरोध का शिकार क्यों,,,? हास्य व्यंग।

 



स.संपादक शिवाकांत पाठक।


भगवान विष्णु का हृदय कहलाने वाली हरिद्वार धरम नगरी में कुछ लोग  वे भले जिस कार्य को कर रहे हैं वह वैध हो या ना हो लेकिन सभी का सम्मान करते हैं, अब यहां प्रश्न उठता है वैध और अवैध का, तो शेर को भूख लगती है तो वह किसी जानवर का शिकार करता है,, यह कार्य जिसका शिकार होता है उसके लिए अवैध है लेकिन भूख से तड़फते शेर के लिए वैद्य कार्य होता है,, इसी लिए खनन वाले,, प्रोपर्टी डीलर,, शराब एवम अन्य नशे के कारोबारी , आदि आदि सभी का सम्मान करते आए हैं,चाहे वह पत्रकार हों या फिर अधिकारी,, यहां पर बात सम्मान की हो रही इसका भी कोइ गलत अर्थ लगाए तो यह उसकी अपनी सोच पर निर्भर करता है,, सम्मान सभी लोग नहीं करते कुछ ही लोग जो संस्कारी होते हैं वे ही सम्मान करते हैं,, सम्मान के बावजूद उन्हें कहीं न कहीं विरोधात्मक गतिविधियों का शिकार होना पड़ता है,,  वैसे तो जिसका भी भरपूर सम्मान नही होता है वह अपनी शक्ति का प्रदर्शन करता है,, इसमें छोटा या बड़ा कोई भी नहीं होता,, विरोध प्रदर्शन पर जब भी कोई भी मैदान में आता है तो उसकी शक्ती का पता चलता है,, इसलिए सम्मान सभी को प्रिय है यह बात याद रखना चाहिए,, साक्षात भगवान कृष्ण ने इंद्र की पूजा करने से सभी को रोक दिया था फिर क्या हुआ सभी जानते हैं इसलिए पूजा या सम्मान के दायरे में छोटा कोई भी नहीं होता  सम्मान सभी को प्रिय होता है,, चाहें वह देवता हो या इंसान सभी चाहते हैं कि उनका सम्मान हो,,,

अब यहां पर बात सम्मान के पीछे छिपे कारणों की की जाए तो आज वर्तमान समय पर यदि ईश्वर की आराधना भी कोइ व्यक्ति करता है तो उसके पीछे उसकी तमाम जिज्ञासाएं छिपी हुई होती है,, कोइ न कोइ स्वार्थ सिद्ध करने हेतु सम्मान या उपासना की आवश्यकता पड़ती है,,


चलो थोड़ा मजे लेते हैं और बात करते हैं अवैद्य खनन की,, जो कि इस समय पर यह मामला सुर्खियों में दिख रहा है,, अब यह अवैध है या वैध इसका निर्णय कैसे किया जाए,, क्यों कि यह संपूर्ण विश्व या संसार इश्वर की अनुपम रचना है,, और ईश्वर सभी में समान रूप से विराजमान हैं,, तो फिर सभी उस ईश्वर परम पिता की संतान हैं वह पिता है हम बेटे है पीटा की संपत्ति पर बेटे का अधिकार होता है यह हमारा संविधान कहता है तो फिर हवा,, सूर्य, नदियों के जल एवम प्राकृतिक सम्पदा पर हमारा ही अधिकार बनता है,,? तो फिर अवैध क्यों,,?


अब पढ़िए ईश्वर सभी जगह समान रुप से सभी में है इसके उदाहरण सभी धार्मिक ग्रंथों में वर्णित हैं,,


इस्लाम धर्म-इस्लाम धर्म में ईश्वर को ‘अल्लाह’ के नाम से जाना जाता है। वही कयामत-महाप्रलय का मालिक है। वही अव्वल है, वही आखिर है। वही प्रकट है, वही गुप्त है। वह गुप्त रूप से की गई फुसफुसाहट को भी आसानी से सुन लेता है, समझ लेता है। उसकी इच्छा के बिना संसार की कोई भी गति विधि संपन्न नहीं हो सकती है। कुरान में ‘रब्ब’ शब्द भी देखने को मिलता है, जिसका अर्थ है ‘महान’।



यहूदी धर्म-इस धर्म में ईश्वर को यहोवा के नाम से जाना जाता है। हजरत मूसा इसके धर्म संचालक माने जाते हैं। यहूदियों का दृढ़ विश्वास है कि उनका मसीहा इस धरती पर फिर से अवतरित होगा और धार्मिक वातावरण निर्मित करेगा। यहूदी धर्म में मसीहा का बड़ा महात्म्य है। उसे यूनानी भाषा में प्रोफेट के नाम से जाना जाता है। यहूदियों का मूल ग्रंथ ‘तोरा’ है।


कुंग-फुत्सु-ये चीन के सर्वप्रथम गुरु हैं, इन्हें अंग्रेजी में कन्फ्यूशियस के नाम से जाना जाता है। इनके मतानुसार अपना सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है। उन्होंने नैतिक एवं धार्मिक जीवन को ही ईश्वर का स्वरूप माना है। उनका विश्वास है कि मनुष्य की भौतिकता से परे कोई अदृश्य एवं आध्यात्मिक चेतना अवश्य है जो इसका नियमन एवं नियंत्रण करती है।


ताओ धर्म-इस धर्म के संस्थापक लाओत्से के अनुसार मनुष्य ताओ (ईश्वर) का कोई स्वरूप नहीं बता सकता। उसका कोई नाम नहीं है, जो अपनी भाषा में उसको जानने का प्रयत्न करते हैं वो उससे दूर ही बने रहते हैं। परमशक्ति शब्द व्याख्या से परे है। उसका आदि और अंत नहीं है। सब की उत्पत्ति उसी से होती है, उसकी उत्पत्ति किसी से नहीं होती। वह जन्म-मरन से मुक्त है।


जापान का शिंता धर्म-शिंता धर्म बौद्ध और कन्यफ्यूशियस धर्म से बहुत पहले का है। यह सूर्य का उपासक धर्म है। प्राकृतिक जीवन के प्रति अगाध प्रेम होने के कारण ही उन्होंने अपने इष्टदेव का चयन किया है। सूर्य की देवी को ही वो देवाधिदेव कहकर पुकारते हैं। उनकी मान्यताओं के अनुसार देवी की सेवा के लिए पांच देवता सदैव बने रहते हैं। 


भारत के आदिवासी-सूर्य को ‘सिनका नंद’ कह कर पुकारते हैं और ईश्वर के सदृश सम्मानास्पद कहकर पूजा-उपासना की विधि बनाते हैं, पूजा करते हैं तथा ईश्वरी सत्ता से पूरी तरह सहमत हैं।


ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी-इन लोगों का कहना है कि ईश्वर बहुत समय पूर्व इस धरती पर रह चुका है और बाद में अपने स्थान पर चला गया। वहीं बैठकर भूïलोक के निवासियों के कर्मों का निरीक्षण करता है और उसी के अनुसार फल प्रदान करता है।


असीरियन-इन लोगों का ईश्वर ‘असुर’ नाम से प्रख्यात है। उनके मुताबिक जीवन का आधार भौतिक तत्त्व नहीं वरन् इससे परे कोई सत्ता है, वही अविनाशी है। 



गीता-श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, जो जाने-अनजाने किसी भी देवता की पूजा करते हैं वो पूर्णत: परम तत्त्व की ही पूजा करते हैं और भिन्न-भिन्न तरीके से साक्षात्कार करते हैं।


विश्व भर में बेशक कितने ही धर्म व उनके संस्थापक हों लेकिन ईश्वर के प्रति उनके विचार लगभग एक से ही हैं। आइये, विभिन्न धर्मों के मूल को जानें।



जैन धर्म-उसे नमस्कार है जो अनेक में एक है और एक में अनेक है और साथ ही एक और अनेक से परे भी है। वह अद्भुत व अविनाशी है। 


पारसी-इसके अनुसार ईश्वर एक है उसे ‘अहरमज्दा’ के नाम से संबोधित किया जाता है जिसका तात्पर्य है- ‘ज्ञानेश्वर सर्वशक्तिमान परमात्मा।’ पारसी ग्रंथ की गाथा में वर्णन है- ‘उस ईश्वर के अतिरिक्त मैं और किसी को नहीं जानता हूं।’



मिश्र-इनके मुताबिक जीवन की सृष्टि  करने वाला वह अनंत एवं सर्वव्यापी है। उसे आंखों से देखा नहीं जा सकता, वही एक निराकार है जो सब कुछ है। 


बाइबल-इसमें ईश्वर की विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है। मैं ही सबका आदि हूं और सबका अंत भी मैं ही हूं। मैं ही प्रकाश हूं जो सबको प्रकाशित करता हूं। मेरे बिना कोई भी प्राणी हलचल नहीं कर सकता।


बौद्ध धर्म-बौद्ध धर्म अन्य धर्मों से भिन्न है। जहां लोग सुख एवं ऐशो-आराम के लिए हमेशा चिंतित एवं दु:खी रहते हैं वहीं बौद्ध धर्म उस परम सुख को पाने का मार्ग दिखाता है। बौद्ध धर्म दोनों के बीच का मार्ग है। यह धर्म न तो शरीर को कठोर कष्ट देने को राजी है न ही संासारिक सुखों में रम जाने की छूट देता है। यह धर्म मानता है संसार दु:खों का सागर है, उसका कारण अज्ञान है।


सूफी संत-‘फकत तफावन है नाम ही का अर्थ दरअसल एक ही है’ केवल नाम का ही अंतर है। जिस प्रकार जो पानी की लहर में है वही बुलबुले में भी है। सब वही है। 


शेखसादी-इसने नामुकीमा में लिखा है- ‘जिसके रहने का कोई स्थान नहीं फिर भी वह सब जगह रहता है यह देखकर बड़ा आश्चर्य होता है।’


उपनिषद-ब्राह्मï सर्वज्ञ विद्यमान है। उसी की ज्योति से सब प्रकाशित है।


इंजील-उस अदृश्य-सत्ता के अंदर सब मौजूद है उसी से सब हरकत करते हैं।


शीकग-इस चीनी ग्रंथ में लिखा है- वह ईश्वर सर्वज्ञ छाया हुआ है तथा जीवन के प्रत्येक क्रियाकलाप पर उसकी नजर सदैव बनी रहती है।


योगावष्ठि-ईश्वर सबके अंत:करण में विद्यमान है। अत: उस उपस्थित ईश्वर को छोड़कर जो बाहर ढूंढने का प्रयत्न करते हैं वो अधर्मी हैं।


मैक्समूलर-विश्व जब कभी भी अंतरम एवं संतोष की खोज करेगा उसे भारतीय दर्शन का अनुशीलन करना ही पड़ेगा।


रामायण-‘व्यापक व्याप्य अखण्ड अनंता अखिल अमोघ शक्ति भगवंता।’


इस सूत्र में उसे सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान शक्ति की संज्ञा दी गई है। जिसे उपनिषदों में ‘एकम् एवं आद्वतीयम’ आदि कहा गया है। विविध ग्रंथों में जिस प्रकार एक सर्व व्यापक एक दिव्य शक्ति की अवधारणा है, उसी प्रकार आज के मूर्धन्य वैज्ञानिक भी किसी ब्रह्मांडकारी विचारशील सत्ता को ही मानते हैं। जो इस विश्व ब्रह्मांड का नियमन करती है। 


स्वामी विवेकानंद-मनुष्य और ईश्वर की परिभाषा बताते हैं- ‘मनुष्य एक ऐसा असीम वृत्त है जिसकी परिधि कहीं भी नहीं है लेकिन जिसका केंद्र एक निश्चित स्थान में है और ईश्वर एक ऐसा वृत्त है जिसकी परिधि कहीं भी नहीं है लेकिन जिसका केंद्र सर्वत्र है।’

भारतीय संविधान की धारा 19 (A) के तहत विचारों की अभिव्यक्ति से सम्बन्धित हास्य व्यंग लेख आपके सामने प्रस्तुत है,, इस लेख का संबंध किसी भी घटना से नहीं है,,

आपकी जानकारी में कोइ समाचार हो तो भेजिए,,9897145867

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