राम ने अयोध्या में अवतार लिया इससे पूर्व भी राम थे पढ़िए। स.संपादक शिवाकांत पाठक।

 


भगवान शिव के अंतर्मन में सदैव निवास करने वाले राम के बारे में जब भगवान शिव को ध्यान मुद्रा में ज्ञात होता है कि हमारे अराध्य प्रभु राम ने अयोध्या में अवतार लिया है तो वे अपनी प्राण वायु को आदेश देते हैं कि वह माता अंजनी के गर्भ में स्थापित होकर वानर रुप में भगवान प्रभु राम की सेवा में पृथ्वी लोक में पहुंचे,, उस प्राण वायु का नाम था प्रभंजन, क्यों हिंदू धार्मिक ग्रंथों में 49 वायु बताए गए हैं,, भगवान शिव का ग्यारहवां रुप रूद्र अवतार हनुमान के नाम से जाना जाता है,, क्यों कि शिव के परम अराध्य देव राम नर रुप में थे इसलिए, निराभिमान को रखते हुए भगवान शिव ने वानर रुप में उनकी सहायता करने का निर्णय लिया,, यदि भगवान शिव भी नर रुप में आते तो भक्त और भगवान के बीच अंतर स्पष्ट ना रह जाता,, 


गौर करें 👇🏽


जेहि सरीर रति राम सो, सो आदरहिं सुजान। रुद्र देह तजि नेह वस, वानर भे हनुमान।


दोहावली के इन पंक्तियों से स्पष्ट है कि ज्ञानी जन उसी शरीर का आदर करते हैं, जिस शरीर की रति अर्थात प्रेम राम से हो। शरीर चाहे जो भी हो। मानस में सर्वत्र राम प्रेमी शरीर का आदर है, चाहे वह गीध, काक,  (कौआ) वानर- भालू, केवट, कोल भील आदि जो भी हो।

राम से प्रेम होने के कारण ही कपि संबोधित हनुमान को देव, नर और मुनि, तनु धारी अर्थात ये शरीर भी वैसा श्रेष्ठ नहीं, ऐसा कहा गया। प्रथमतः तो कपि शरीर को देव नर मुनि से श्रेष्ठ कहते हुए पुनः सुत कह कर उस शरीर को प्रतिष्ठा दी और अपने को कभी उऋण न हो सकने वाला ऋणी घोषित किया अपने हृदय से लगा लिया सोचिए कि कितने करुणा निधान है प्रभु राम,, इस प्रकार यह सिद्ध है, कि अधम से अधम शरीर भी राम से प्रीति प्रेम होने पर ज्ञानी जनों के मध्य आदरणीय हो जाता है, तभी तो लिखा है कि जापर कृपा राम की होई तापर कृपा करे सब कोई,,, यही संकेत करते हुए शिव जी ने वानर (हनुमान) का शरीर ग्रहण कर लिया।

इसी कारण प्रेमवश शिवजी ने अपने शरीर का त्याग कर वानर (हनुमान) शरीर से अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त की। वानर जैसा अधम शरीर जिसका नाम सुबह लेने से भोजन नहीं मिलता,,,


गो स्वामी तुलसी दास जी महराज लिखते हैं,,

 प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा।।


'अस मैं अधम सखा सुनु ।' राम रति के कारण इस शरीर का इतना आदर हुआ, और श्रीमुख से उस शरीर की  बड़ाई की गयी-


सुनु कपि तोहि समान उपकारी। नहिं कोउ सुर नर मुनि तनु धारी। व सुनु सुत तोहि उरिन मै नाहीं। देखेउँ करि विचार मन माही।


ऐसे थे हमारे राम थोड़े से उपकार पर भी सदैव ऋणी रहने की बात कहने वाले राम जिनकी बिना इक्षा के पत्ता भी नहीं हिल सकता,, वे राम कहते हैं कि हनुमान तुम्हारे उपकार से मैं कभी भी ऋण से मुक्त नहीं हो सकता,,,


ऐसे राम को मैं बारंबार प्रणाम करता हूं,,,


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