आपको शुभकामनाएं ,,,वैदिक गणना का एक हिस्सा है मकर संक्रांति।

 


संपादक शिवाकांत पाठक।



मकरसंक्रांति 15 जनवरी को और लोहड़ी का पर्व मकर संक्रांति से एक दिन पहले 14 जनवरी को मनाया जाता है. कथित ब्राह्मणों की नौटंकी से हमारे अधिकांश पर्व दो-दो दिन मनाये जाते हैं जब ऐसा नहीं होना चाहिए,, अलग-अलग लोगों द्वारा. इसी तरह ये दोनों पर्व भी कुछ लोग एक दिन मनाते हैं तो कुछ लोग दूसरे दिन.


पंकज चौहान की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं 

  लोहड़ी के इस दिन से माघ मास की शुरुआत भी हो जाती है। इस दिन अग्नि जलाकर परिवार के सभी सदस्य परिक्रमा करते हैं और अग्नि को रवि की फसल भेंट की जाती है।



नौशाद अली की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं,,,

   साथ ही परिवार के रिश्तेदारों और प्रियजनों को इस पर्व की बधाई देते हैं और ताल से ताल मिलाकर नृत्य करते हैं। 


अर्धेन्दु दास,,, की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं 

    सिखों और पंजाबियों के लिए लोहड़ी खास मायने रखती है। यह पर्व मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। इस त्योहार की तैयारियां कुछ दिन पहले से ही शुरू हो जाती हैं।


अवनीश कुमार मिश्रा,,,,, की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं,,


    लोहड़ी के बाद से ही दिन बड़े होने लगते हैं, यानी माघ मास शुरू हो जाता है। यह त्योहार पूरे विश्व में मनाया जाता है। हालांकि पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में ये त्योहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।


संपादक शिवाकांत पाठक,,,,, की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं,,

    लोहड़ी की रात को सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, जिसके बाद अगले दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है।


हमारी लोक संस्कृति अति प्राचीन संस्कृति है, उसमें अपने जीवन पर प्रभाव पड़ने वाले ग्रह, नक्षत्र के अनुसार ही वार, तिथि त्यौहार बनाये गये हैं। इसमें से एक है  मकर संक्रांति. इस बार 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जायेगी।


  वैदिक धर्म ने माह को दो भागों में बाँटा है- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। इसी तरह वर्ष को भी दो भागों में बाँट रखा है : पहला उत्तरायण और दूसरा दक्षिणायन। उक्त दो अयन को मिलाकर एक वर्ष होता है।   


   मकर संक्रांति के दिन सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करने की दिशा बदलते हुए थोड़ा उत्तर की ओर ढलता जाता है, इसलिए इस काल को उत्तरायण कहते हैं।  


   इसी दिन से अलग-अलग राज्यों में गंगा नदी के किनारे माघ मेला या गंगा स्नान का आयोजन किया जाता है। कुंभ के पहले स्नान की शुरुआत भी इसी दिन से होती है।



सूर्य पर आधारित गणना में मकर संक्रांति का बहुत अधिक महत्व माना गया है। वेद और पुराणों में भी इस दिन का विशेष उल्लेख मिलता है। होली, दीपावली, दुर्गोत्सव, शिवरात्रि और अन्य कई त्यौहार विशेष कथा पर आधारित हैं. मकर संक्रांति खगोलीय घटना है, जिससे जड़ और चेतन की दशा और दिशा तय होती है।


सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश को उत्तरायण माना जाता है। इस राशि परिवर्तन के समय को ही मकर संक्रांति कहते हैं। यही एकमात्र पर्व है जिसे समूचे भारत में मनाया जाता है, चाहे इसका नाम प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग हो और इसे मनाने के तरीके भी भिन्न हो, किंतु यह बहुत ही महत्व का पर्व है।


*विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नाम-रूप :*


उत्तर प्रदेश :


   मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व कहा जाता है। सूर्य की पूजा की जाती है। चावल और दाल की खिचड़ी खाई और दान की जाती है।


उत्तराखण्ड :


  इस दिन इसे उत्तरायणी के रूप में बड़े ही हर्षोलाश के साथ मनाया जाता है।


   कई स्थानो पर मेले का आयोजन किया जाता है जिसे कुमायूं में उत्तरायणी मेला तथा गढवाल में गिन्दी कौथिक कहते हैं। इस दिन जलेबी खाने का भी प्रचलन है।


गुजरात और राजस्थान :


यहां यह उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है। पतंग उत्सव का आयोजन किया जाता है।


आंध्रप्रदेश :


यहां यह पर्व संक्रांति के नाम से तीन दिन तक मनाया जाता है.


तमिलनाडु :


किसानों का ये प्रमुख पर्व पोंगल के नाम से मनाया जाता है। घी में दाल-चावल की खिचड़ी पकाई और खिलाई जाती है।


महाराष्ट्र :


यहां लोग गजक और तिल के लड्डू खाते हैं और एक दूसरे को भेंट देकर शुभकामनाएं देते हैं।


पश्चिम बंगाल :


यहां हुगली नदी पर गंगा सागर मेले का आयोजन किया जाता है।


असम :


भोगली बिहू के नाम से इस पर्व को मनाया जाता है।


पंजाब :


 एक दिन पूर्व लोहड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है। धूमधाम के साथ समारोहों का आयोजन किया जाता है।


इसी दिन से हमारी धरती एक नए वर्ष में और सूर्य एक नई गति में प्रवेश करता है। वैसे वैज्ञानिक कहते हैं कि 21 मार्च को धरती सूर्य का एक चक्कर पूर्ण कर लेती है तो इसे माने तो नववर्ष तभी मनाया जाना चाहिए।


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