क्या आप जानते हैं,,,? भारत के लिए शक्ति और पराक्रम का ऊर्जा श्रोत हैं वीर हनुमान।
स.संपादक शिवाकांत पाठक।
तुलसी कृति रामायण में सुंदर काण्ड आपने सुना होगा इसका पाठ भी लोग कराते हैं,, खुद नहीं करते क्यों कि समय नहीं है,, और समय या सांसे ईश्वर की सत्ता द्वारा प्राप्त होती हैं,,, वे आपकी धरोहर नहीं हैं,, इसलिए धार्मिक अनुष्ठान आप स्वयं करें,,
असीम बलशाली हनुमान जी सुग्रीव के आदेश पर सीता मां की खोज में निकले वानर भालुओं की सेना में शामिल थे, संपाती के अनुसार मां जानकी का पता चलने पर आपस में वानरों की सेना में समुंदर पार जानें की चर्चा हो रही थी,, सभी अपनें अपनें बल का बखान कर रहे थे कुछ कह रहे थे कि मैं जा तो सकता हूं लेकिन लौटने में शंका है,,
राम चरित मानस में गो स्वामी तुलसी दास जी महराज लिखते हैं
अंगद कहइ जाउँ मैं पारा। जियँ संसय कछु फिरती बारा॥
जामवंत कह तुम्ह सब लायक। पठइअ किमि सबही कर नायक॥1॥
भावार्थ:-अंगद ने कहा- मैं पार तो चला जाऊँगा, परंतु लौटते समय के लिए हृदय में कुछ संदेह है। जाम्बवान् ने कहा- तुम सब प्रकार से योग्य हो, परंतु तुम सबके नेता हो, तुम्हे कैसे भेजा जाए?॥1॥
लेकिन हनुमान जी तो एक दम चुप बैठे रहे उन्होने अपने बल का बखान नहीं किया,,, आखिर क्यों,,,?
अतुलित बल धामम,, अतुलित बल का अर्थ है कि जिस बल की किसी के साथ तुलना ना की जा सके ,, ऐसे महावीर हनुमान चुप बैठे थे क्यों कि उनके अंदर अभिमान लेश मात्र नहीं था,, जिन्हे अपने बल पर अभिमान था वे सब बखान कर रहे थे,, हनुमान जी तो प्रभु राम के लिए समर्पित थे,, उनका अपना कुछ भी नहीं था यदि होता तो वे कहते ,, इसलिए चुप बैठे रहे,,, क्यों कि जहां अज्ञानी ज्यादा हों वहां ज्ञानी व्यक्ति चुप हो जाया करता है,, और हनुमान जी ज्ञानियों में भी श्रेष्ठ हैं,,,,
लेकिन जब बूढ़े बुजुर्ग जामवंत जी ने हनुमान से कहा कि,,,,,
कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना॥
पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना॥2॥
तो हनुमान जी प्रसन्न होकर उनकी बात मान लेते हैं,, इसका मतलब यह है कि बूढ़े बुजुर्ग जो भी कहे उसको मानने वाला लंका जलाने की शक्ति रखता है,,, यही भारतीय संस्कृति है जिसका उदाहरण वीर हनुमान प्रस्तुत करते हैं,,,
जामवंत के बचन सुहाए।
सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई।
सहि दुख कंद मूल फल खाई॥
जाम्बवान के सुहावने वचन सुनकर हनुमानजी को अपने मन में वे वचन बहुत अच्छे लगे॥
और हनुमानजी ने कहा की हे भाइयो! आप लोग कन्द, मूल व फल खा, दुःख सह कर मेरी राह देखना॥
हनुमान जी सभी से कहते हैं कि,,,,
जब लगि आवौं सीतहि देखी।
होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा।
चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥
जबतक मै सीताजीको देखकर लौट न आऊँ, क्योंकि कार्य सिद्ध होने पर मन को बड़ा हर्ष होगा॥
ऐसे कह, सबको नमस्कार करके, रामचन्द्रजी का ह्रदय में ध्यान धरकर, प्रसन्न होकर हनुमानजी लंका जाने के लिए चले॥
शेष दिनांक,,28/01/2024 रविवार को आप पढ़िए,, सम्पूर्ण वृतांत 🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🙏🙏🙏🙏🙏🙏
आप अपनें लेख कविता गीत,, हमको भेजो,,9897145867
Comments
Post a Comment