बढ़ते हुए भ्रष्टाचार और अपराध में दोषी है समाज का धूमिल आइना।

 



( पर्दे में रहने दो पर्दा ना उठाओ,,,, पर्दा जो उठ गया तो,,,,)


*स. संपादक शिवाकांत पाठक*।


जिन्हे दो वक्त की रोटी नशीब नहीं थी सर्दी से बचने हेतु मकान या कपड़े नहीं थे फिर राष्ट्र हित में अंग्रेजो के खिलाफ बगावत का बिगुल फूकने का काम करने वाले उन सभी क्रांतिकारी पत्रकारों को हम सर्व प्रथम कोटि कोटि नमन करते हैं, जिन्होंने विषम परिस्थितियों में भी भारतीय जनता के मन में क्रांति का बीज बोया सच को सामने रखकर अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे,,

वास्तव में  समाज का आईना कहलाने वाली पत्रकारिता भी आज बढ़ते हुए अपराध और भ्रष्टाचार में दोषी है इस बात को नकारा नहीं जा सकता,, क्यों कि पत्रकारिता पहले जीविका चलाने का साधन नहीं थी अपितु राष्ट्र एवम समाज के प्रति एक बलिदान और समर्पण का नाम था पत्रकारिता ,, लेकिन अब सोशल मीडिया या अन्य कारणो से पत्रकारिता की छवि समाज के सामने धूमिल हो चुकी है,, सत्य के पुजारी अब कम दिखते हैं,, या यूं मान लिया जाए कि उनका अब आभाव जनता को भी महसूस होने लगा है,, जनता की वास्त्विक स्थिति के बारे में सोचने की क्षमता ना रखने वाले भी खुद को पत्रकार कहलाने में पीछे नहीं है,, जिनका मकसद ही सिर्फ धनार्जन हो जिनकी लेखनी ही केवल धन को लक्ष बनाते हुए कार्य करे तो उसे क्या कहेंगे आप,,पत्रकारिता आज का बेहद डरावना और जटिल विषय बनकर समाज के सामने धृतराष्ट्र की भूमिका निभाते देखा जा रहा है,, यानी कि सत्य की आखों में पट्टी बंधी हुई है,, वह स्वयं सत्य को देखना नहीं चाहता,, उसे आभास नहीं करना चाहता,, कूप मंडूप ( कुएं का मेढक ) की तरह सिमट कर चंद स्वार्थों को सिद्ध करने हेतु सीमित हो चुकी कुछ लोगों की पत्रकारिता ,, जिसे शासन प्रशासन भी आज अनदेखा करने के लिए विवश नजर आ रहा है,, जिससे कि देश की वास्तविक स्थिति ऐसे मोड़ पर जा रही है,, जिसमें फिर कभी भी लौटने की संभावना नहीं रह जाती,, आज हमारे देश में निरंतर बढ़ रही नशे की प्रवृत्ति से कैसे निपटा जा सकता है,, क्या सिर्फ पुलिस प्रशासन ही तमाम अपराधों की रोकथाम करने के बावजूद इस समस्या पर अंकुश लगाने में कामयाब हो सकता है,,,? 

यह एक सामाजिक अपराध की श्रेणी में आता है जिस अपराध को समाज ही जन्म देता है उस अपराध पर समाज के बुद्धिजीवी वर्ग को आगे आना चाहिए,, इस बात को वास्तविक रूप से कौन कौन लिखता है,,? 


क्यों लिखें,, क्या सरोकार है इस बात से,, क्यो कि इससे कोई भी व्यक्तिगत लाभ नहीं होने वाला,, आज संस्कारों की पाठशाला में हम खुद को अकेला महसूस करते हैं,, क्यों कि मिडिया इस संबंध में समाज को नई दिशा तब देगी जब उसे अपने खुद के लाभ से हटकर समाज के बारे में सोचने की ज़रूरत महसूस होगी,, लेकिन ऐसा क्यों होगा,, और कैसे,,?

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