परीक्षा पर चर्चा माननीय नरेन्द्र मोदी जी के साथ। मनोज श्रीवास्तव सहायक सूचना निदेशक उत्तराखंड।

 



स.संपादक शिवाकांत पाठक।



( माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने परीक्षा के तनाव को कम करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर प्रकाश डाला है। यह परीक्षा स्कूल परीक्षा न होकर सम्पूण् जीवन की परीक्षा से सम्बन्धित था। सम्पूर्ण कथन आज के ज्वलंत पैरेंटिंग की समस्या से सम्बन्धित था। बच्चों का सकारात्मक एवं सत्ता विकास कैसे सम्भव हो इस पर विस्तार से चर्चा की गई। कार्यकम में किसी स्कूली परीक्षा को पूरे जीवन की परीक्षा न मानने की सलाह दी गई है। सलाह में कहा गया है परीक्षा को उत्सव के रूप में मनाया जाय। परीक्षा के दौरान किसी प्रकार का दबाव महसूस न किया जाय )


यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि मोदी जी भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने बाह्य स्तर के विकास की अपेक्षा मनुष्य के आन्तरिक विकास की चर्चा की है। मोदी जी के प्रयास से संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 जून को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मान्यता दी। परिणाम स्वरूप आज योग की पहचान बच्चा-बच्चा करने लगा है। आन्तरिक शक्ति के रूप में प्रधानमंत्री मोदी ने मन की बात प्रारम्भ की। मन की बात कहने की सभी बात करते हैं। परन्तु पहले हम मन तक पहुचें। मन की बात, मन तक पहुचे विना नहीं कहा जा सकता है। मन तक पहुचने के लिए योग मेडिटेशन, ध्यान और प्रणायम की आवश्यकता होगी। यह हमारे ऊर्जा के स्रोत हैं।


पिछले दिनों में संयुक्त परिवार के कारण पैरेटिंग सबसे आसान कार्य था। आज पैरेंटिंग सबसे चुनौती भरा काम हो चुका है। आज माता-पिता और बच्चों दोनों में ही टालरेंस, एडजेस्टमेंट और एक्सेप्टेंस का अभाव दिखता है। दोनों वर्ग एक-दूसरे से दूर होते चले जा रहे हैं। कहा जाता है यदि हमने अच्छी तरह से पैरेटिंग कर ली तब हमारे और बच्चों के भीतर टालरेंस, एडजेस्टमेंट और एक्सेप्टेंस लेबल का स्वतः ही विकास हो जायेगा।


आज बच्चा हमसे दूर होता चला जा रहा है। इसलिए बच्चे के लिए खतरनाक स्थिति उत्पन्न होती है। उसके गलत चीज की समीप जाने का खतरा बन जाता है। इसलिए प्रयास यह करना चाहिए कि बच्चे को अपने से दूर न जाने दें।


हम बच्चे को उसकी गलती के साथ एक्सेप्ट नहीं कर पाते हैं, और बच्चे को रिजेक्ट कर देते हैं। इसलिए बच्चा एक्सेप्टेंस या स्वीकार्यता पाने के लिए अपने अच्छे या बुरे दोस्त के समीप चला जाता है। बच्चा अपनी हर बात अपने पैरेंट से न बताकर अपने दोस्तों से बताने लगता है। अपने दोस्तों की स्वीकार्यता प्राप्त करने के लिए वह हर नाजयज मांग को भी स्वीकार करने लगता है।


महत्वपूर्ण बात यह है जब हम बच्चे को रिजेक्ट कर देंगे तब बच्चा हमारी बात सुनेगा नहीं। जब हमारी बात सुनेगा नहीं तब हमारी बात मानना तो बहुत दूर की बात है।


बच्चे में निर्णय शक्ति के विकास की आवश्यकता होती है। निर्णय शक्ति के अभाव में जो बच्चा चार साल की अवधि में हमारा हाथ पकड़ कर चलता था, वहीं बच्चा आज चालीस साल हो जाने के बाद भी हमारा हाथ छोड़ने का साहस नहीं कर पाता है। बच्चों को हर हाल में निर्णय लेने दें। क्योंकि बच्चों के गलत निर्णय से होने वाला नुक्सान उतना महत्वपूर्ण नहीं होगा, जितना कि बच्चे में निर्णय शक्ति के अभाव से होगा। निर्णय शक्ति उत्तरदायित्व से बढ़ता जितना हम बच्चे को उत्तरदायित्व देंगे उतना ही अधिक बच्चे में निर्णय शक्ति का विकास होगा।


परीक्षा तनाव के लिए, परीक्षा पर अत्यधिक फोकस को माना गया है। इसलिए परीक्षा तनाव कम करने के लिए डी-फोकस के महत्ता को स्वीकार करना चाहिए। हम स्वयं को नहीं जानते हैं। इसलिए हम अपने कमियों और विशेषताओं की पहचान करना सीखें। अपने कमियों पर फोकस करना बंद करें। अपने विशेषताओं पर डी-फोकस करें। फोकस के दौरान ऊर्जा का व्यय होता है। जबकि डी-फोकस के दौरान ऊर्जा की प्राप्ति होती है। डी-फोकस करने के लिए हम कमरे के बाहर निकल जायें। हवा, आकाश, जल इत्यादि प्रकृति के सम्पर्क में आयें। ध्यान, योग, मेडिटेशन का सहारा लें। हर समय कैरियर, स्कूल, पढाई, सलाह शब्द से बचें। गांधी जी का सिद्धांत है कि कोई भी आन्दोलन निरन्तर नहीं चलाया जा सकता है। इसलिए गांधी ने स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान संघर्ष-विराम-संघर्ष नीति पर चलते थे। 1919 के असहयोग आन्दोलन के बाद विराम का काल है। पुनः विराम के बाद 1929 नमक सत्याग्रह के रूप में संघर्ष करते हैं। पुनः 1942 तक विराम काल के बाद भारत छोड़ो आन्दोलन के रूप में संघर्ष करते हैं। इसलिए किसी विषय पर लगातार फोकस नहीं रखा जा सकता है।


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