सामने हंसता है तन्हाइयों में रोता है,,।
सामने हंसता है तन्हाइयों में रोता है,,।
वो कोइ और नहीं
सिर्फ़ पिता होता है,,।।
अपनें बच्चों के लिए जिंदगी गवांता है,,।
वाकिया हर लबों पे मां का बयां होता है,,।।
सामने हंसता है तन्हाइयों में रोता है,,।
वो कोइ और नहीं
सिर्फ़ पिता होता है,,।।
पिता हर घर में बच्चों की शान होता है।
नहीं होता है तो सारा जहान रोता है,,।।
नहीं मिलता जिसे सुकून जिंदगी में कभी,,।
कुछ ना पूछो पिता ऐसी थकान होता है,,।।
पुष्प के बीज अपनें घर में सदा बोता है,,,,
वो कोइ और नहीं
सिर्फ़ पिता होता है,,।।
पिता के लिए समर्पित रचना
स्वरचित मौलिक रचना
स.संपादक शिवाकांत पाठक
हरिद्वार उत्तराखंड
संपर्क सूत्र,,📞9897145867
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